डॉ.रघुनाथ मिश्र ‘सहज’ के चुनिन्दा मुक्तक
मुक्तक
आओ मिल जुल हंसें-हंसाएं.
हर सुख-दुःख में संग हो जाएँ.
चाहे कुछ भी हो जाये पर,
आपस में ना लड़ें – लड़ाएं.
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जीना उसका जीना है.
जिसका चौड़ा सीना है.
हँसता ही रहता जग ने,
जिसका सब कुछ छीना है.
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भूख – प्यास,हारी – बीमारी.
घर – घर में फैली लाचारी.
कामचोर को सारी सुविधा,
कामगार बन गया भिखारी.
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आओ सूर्य रश्मियों की हम भाषा समझें.
उन्हें लगी है हमसे व्यापक आशा समझें.
प्यार मुहब्बत, भाई चारा अपरिहार्य है,
पैदा करें समझ अन्दर की भाषा समझें.