डॉ.रघुनाथ मिश्र ‘सहज’ की कुण्डलिया
1.आशा
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आशा यूँ मत छोड़ना, आशा ही संसार.
इससे ही जीवन चले,है यह ही आधार.
है यह ही आधार,याद रखना यह प्रियवर,
इससे ही सम्मान, मिलेंगे अछे रहबर,
कहे ‘सहज’ कविराय, समझ लो सच परिभाषा.
कुछ भी संकट आय, छोड़ना कभी न आशा.
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2.सुबह
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सुबह हुई उठ जाइये, करिए रवि से बात.
जीवन में मत चूकिए, सदा चले शह- मात.
सदा चले शह-मात, कर्म योगी बन रहिये.
स्थिर रहिये आप, भलाई अर्जित करिए.
कहे ‘सहज’कविराय, नहीं कतई गाफिल रह.
पकड़ समय का हाथ,शुरू कर सफ़र इस सुबह.
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3.प्रियवर
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प्रियवर तेरी प्रीति रे, देगी तव भवभूति.
मत मलीन मन को करे,होगी यह अनुभूति.
होगी यह अनुभूति, तसल्ली रख ले भाई.
पाक – साफ़ हो ह्रदय,करे बस साफ़ कमाई.
कहें ‘सहज’ कविराय, चले दुनियाँ से हट कर.
सुन दिल की आवाज़,चले उस पर ही प्रियवर.
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@डॉ.रघुनाथ मिश्र ‘सहज’
अधिवक्ता/साहित्यकार
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