डॉ अरूण कुमार शास्त्री
डॉ अरूण कुमार शास्त्री
ऐ री मैं तो प्रेम दीवानी
मुझे इंतजार करना अच्छा लगता है विशेष परिस्थितियों में जिनके सूत्रधार तुम हो ।
इंतजार भी खूबसूरत हो सकता है, पहले तो मैंने कभी सोचा न था।
मायने नहीं रखता कि आपका ईश्वर, ईश्वर है या कोई इन्सान सिर्फ इबादत करते हैं वो लोग।
जिन्होंने चाकरी करनी होती हैं वो झुकते हैं तो सिर्फ़ सम्पूर्ण ब्रह्मांड में उसके आगे जो उनकी नज़र में होता उनका खुदा ।
आनन्द ही आनन्द होता है उनके लिए इस स्थिति में जो उनके अलावा कहां दिखाई देता किसी और को ।
जैसे मीरा नाचती थी तो सिर्फ कृष्ण के लिए मात्र , उसको शर्म महसूस हुई ही नहीं, परिवार राणा का जिसे कहता बेहयाई।
प्रेम का सरोवर, भक्ति का भाव नहीं देखता डूब जाता है उसकी तृप्ति ही उसका एक अवलंबन बस और कुछ नहीं।
तुम लाख कोशिशों से डूबो उस आनन्द को उसको न पाओगे जिस दिन पा लोगे , मीरा न हो जाओगे।
करी थी कोशिश हजारों ने लेकिन सफल न हुऐ कारण कुछ और नहीं बस मीरा तो युगों युगों में एक ही होती कोई विरली जिसके लिए हलाहल भी था बेअसर साबित हुआ ।