डॉ अरुण कुमार शास्त्री – एक अबोध बालक
डॉ अरुण कुमार शास्त्री – एक अबोध बालक
उधो ज्ञान पसरता जाए
खंड – खंड मन हो रहा ।
अब ये सहा न जाए
हर मन बिखरा रहा
पल – पल ज्ञान विचार
दूजे से मैं श्रेष्ठ हूँ
उत्तम नेक विचार
रेत सम समाया मुट्ठी में
अब जो बिखरता जाए
उधो ज्ञान पसरता जाए
खंड – खंड मन हो रहा ।
अब ये सहा न जाए
उधो ज्ञान पसरता जाए
खंड – खंड मन हो रहा ।
अब ये सहा न जाए
ज्ञान गया मन न गया ये जो कहे फकीर
सत्य वचन ये बात बा बसा ज़्यूं अमिट लकीर
डॉ अरुण कुमार शास्त्री – एक अबोध बालक
उधो ज्ञान पसरता जाए
खंड – खंड मन हो रहा ।
अब ये सहा न जाए
हर मन बिखरा रहा
पल – पल ज्ञान विचार
दूजे से मैं श्रेष्ठ हूँ
उत्तम नेक विचार
रेत सम समाया मुट्ठी में
अब जो बिखरता जाए
उधो ज्ञान पसरता जाए
खंड – खंड मन हो रहा ।
अब ये सहा न जाए
उधो ज्ञान पसरता जाए
खंड – खंड मन हो रहा ।
अब ये सहा न जाए