डॉ अरुण कुमार शास्त्री एक अबोध बालक
डॉ अरुण कुमार शास्त्री एक अबोध बालक
झरनों सा जीवन है मेरा
किस जग आया किस जग जाणा ।
देस पराया लोक पराए
वेख वेख रब मेरा मुसकाया ।
दुनिया दारी बहुत ही माड़ी ।
दुनिया दारी बहुत ही माड़ी ।
किन्ने अगाड़ी किन्ने पिछाड़ी ।
झरनों सा जीवन है मेरा
किस जग आया किस जग जाणा ।
रब नु चाहो रब नु ही ध्याओ ।
रब नु चाहो रब नु ही ध्याओ ।
होर किसे नु तुसी भुल जाओ ।
जे न मननी आ गल मेरी ।
आ आ ओ ओ
जे न मननी आ गल मेरी ।
फेर ते अश्क बहान दे जाओ ।
जे न मननी आ गल मेरी ।
फेर ते अश्क बहान दे जाओ ।
झरनों सा जीवन है मेरा
किस जग आया किस जग जाणा ।