डैडी
डैडी
क्यों मेरी लाड़ो, पापा से छादी क्यों नहीं कलनी?
मुदे नई पता, आप बहोत दंदे हो पापा, पिथली बाल तहा था तौफी लेने दा लहा हूँ, इत्ते दिन लद दये तौफी लाने में? मुदे आपथे बात ही नई तरनी आप दाओ पापा, मुदे आपथे तोई बात नई तलनी!
औल मेली बीदीओ त्यों बना लहे हो…..
*
अरे हो गया दीपू, कितना रोयेगी, बंद कर ये वीडियो, और जाकर ज़रा देख तो कि बनवारी अभी तक फूल लेकर लौटा क्यों नहीं, इसको तो बस बहाना चाहिए रफ़ूचक्कर होने का।
अरे आ गया मालकिन! आज भईया जी की 15वीं पुण्यतिथि है ना, ज़्यादा फूल लगेंगे ये सोंचकर होलसेल मंडी चला गया था, इसलिए थोड़ी देर हो गई।
थोड़ी? इसे थोड़ी देर कहते हो काका, इतनी देर में तो मैं 5 बार मंडी हो आऊं! अच्छा काका, वो रजनीगंधा की माला तो लाये हो ना, पापा को बहुत पसंद हैं, भूले तो नहीं ना?
कैसी बात करती है दीपू, मैं तुम्हारी बात भूल जाऊँगा, तुम्हारी! और वो भी तब, जब बात भईया जी के फूलों की हो, हो हीं नहीं सकता। लाया हूँ!
दीपू, ओ दीपू सारा दिन गप्प हांकती रहना, घोड़ी जैसी हो गई ये लड़की, और काम एक भी नहीं आता, सुन रही है?
हाँ माँ आई! काका एक काम करोगे, इन फूलों से पापा की टेबल डेकोरेट कर दोगे प्लीज, मैं माँ का हुक्म बजाकर बस अभी आई।
हाँ माता जी, बोलिये क्या हुक्म है?
सुन एक काम कर, छोड़…तू रहने दे, मैं हीं कर लूँगी! तू एक करेगी 10 बढ़ा देगी।
अब बोलो ना माँ, क्या करना है। मैं खीर बना दूँ? पापा की फ़ेवरेट वाली!
नहीं सुन, पापा की यूनिफॉर्म निकाल दे, और अच्छे से….. सुन रही है ना ! एकदम अच्छे से निकाल कर उस कमरे में हैंगर में टाँग देना, और हाँ पापा के शूज भी अच्छे से पॉलिस कर दे।
अच्छा ठी..क है, कर देती हूँ, वैसे मॉम्सी अगर तू नहीं भी कहती ना, तो भी मैं कर देती।
हाँ हाँ क्यों नहीं, तू कितना कर देती, पता है मुझे। अब ज़्यादा बातें न बना, जल्दी जा!
जा तो रही हूँ माँ, कितना बोलते हो आप!
*
पापा! कैसे हो? मेरी याद आती है ना! और मम्मा की? आप वापिस आ जाओ ना पापा, मैं अब कभी ज़िद नहीं करती, कभी रोती भी नहीं, सच्ची पापा, एकदम सच्ची
दीपू बेटा, ये गुलाब कहाँ लगाने हैं?
आई काका, पापा की यूनिफॉर्म निकाल रही हूँ, आती हूँ
*
अरे काका, हर साल एक हीं स्टाइल में क्यों सजाते हो, थोड़ी तो वेरिएशन लाओ यार, पापा कितना बोर होते होंगे, हर साल सेम सेम। आप छोड़ो मैं क़रतीं हूँ।
दीपू तू रहने दे, और काका को करने दे, करना तुझे कुछ भी नहीं होता पर सबके काम में दखल ज़रूर देना है।
आप यहां क्या कर रहे हो मॉम्सी, आप जाकर अपना किचन संभालो ना, मैं और काका कर लेंगे, क्यों काका??
वैसे मालकिन सही कह रहीं है दीपू, मैं कर लूँगा बेटा, तू जा और जाकर मम्मी की किचन में हेल्प कर, ठीक है।
अच्छा मम्मा, एक बात पूछुं? पापा को रजनीगंधा के फूल क्यों पसंद थें, जबकि दिखने में तो गुलाब ज़्यादा सुंदर होते हैं?
तुम्हारे पापा कभी बाहरी सुंदरता पर ध्यान नहीं देते थें, इन रजनीगंधा फूलों से निकली खुशबू बहुत दूर तक जाती है, उनका कहना था कि इंसान को इन फूलों के जैसा होना चाहिए, बाहर से खूबसूरत हो न हो पर उसकी अच्छाई, उसकी कृपादृष्टि दूर तक पड़नी चाहिए, ऐसा इंसान मर कर भी अमर रहता है।
खैर छोड़ इन बातों को, देखा बनवारी! सवालों में उलझाकर काम से बच निकलने की तरकीब कोई इन दीपू रानी से सीखे, मैं चली अपने किचन में, इसके चक्कर में रहूँगी तो समय पर एक काम न हो पाए। आप दोनों अच्छे से इधर का सब देख लेना!
*
काका तुम्हें पापा की कौन सी बात सबसे ज़्यादा पसंद थी?
पाबंदी, वो समय के बहुत पाबंद थें, हर काम समय से करते थें! उन्हें लेट लतीफी या किसी काम को टालना ज़रा भी पसंद नहीं था। वो होते तो अब तक तेरी शादी की बात चल रही होती! (दीपू और बनवारी की मिश्रित हँसी की आवाज़)
आप रहने दो काका, आपका बस चले तो आप आज हीं हमें भगा दो। पर ये बात मैं नहीं मानती की पापा समय के पाबंद थें, हर काम समय से करते थें, अगर ऐसा होता तो बेसमय, यों बीच रास्ते में हमसबको छोड़ कर नहीं जातें!
(बात बदलते हुए)और देखो ना, मुझसे शादी भी नहीं की, वादा करके निकल लियें (दीपू और बनवारी की मिश्रित हँसी की आवाज़)
दीपू! तुम्हें अपने पापा की कौन सी बात पसंद थी?
मेरे लिए तो पापा का मतलब है, ड्राइंग बुक, कलर पेंसिल, टॉफी, यूनिफार्म, गन और हमदोनों की बुल फाइट।
काका, पापा यदि कारगिल नहीं जातें तो आज हमसबके साथ होते ना!
क्या तुझे सच मे लगता है दीपू? वो अपनी पलटन को अकेला छोड़ तेरी गप्पेबाजी सुनने के लिए यहाँ होतें!?
प..ता है ! नहीं होतें!
उनके पास तो मेरे लिए टाइम हीं कहाँ होता था, पर जब भी छुट्टी आते थें, क्या फुल धमाचौकड़ी होती थी, है ना काका ? उनके हाथ के पोहे, वाह! क्या गज़ब के होते थें, मम्मा को तो आती हीं नहीं, मुझे पता होता न काका कि वो जल्दी हीं मुझे छोड़कर चले जायेंगे तो उनसे बनाना सीख लेती, पर उन्होंने तो बताया हीं नहीं, कहकर गए थें कि मेरे लिए कलर पेंसिल लेने जा रहे हैं, और लौटें तो तिरंगे में लिपट कर हीं लौटें, मैंने तो उन्हें बाई तक नहीं बोला काका, मैंने जाने समय उनसे बात तक नहीं की!
तुम उस समय बहुत छोटी थी न बिटिया, फर्ज़-जिम्मेदारी-देशभक्ति तुम्हें समझ नहीं आती, ऐसे में भईया जी तुमसे क्या कहकर जातें, तुम जाने देती??
*
दीपू ! तुमने ब्रिगेडियर अंकल को आने को तो बोला है ना? एक बार फिर से उन्हें कॉल करके याद दिलवा दे, कि आज मेजर साहब का शहादत दिवस है, कहीं भूल न गए हों
हाँ, मम्मा कह दिया है, वो लोग 5 बजे तक आ जाएंगे
नहीं, तू मेरे सामने कॉल कर, और फिर से बोल
क्या मम्मा, कितनी बेवकूफ लगूँगी, अभी घंटे भर पहले हीं तो कॉल किया था
ये ले, रिंग जा रही है, बात कर!
हेलो अंकल! आपको याद है ना, आज आपने हमारे घर आना है!
तुम बुलाओ और हम न आयें, ऐसा भी हो सकता है मैडम जी?
क… कौन बोल रहा है?
अरे मैं बोल रहा हूँ, आपका दुश्मन!!
अच्छा जी, आप हो! कब आये? बताया भी नहीं।
आज हीं आया हूँ, यहीं इसी शहर पोस्टिंग हो गई है
कल से चार्ज भी लेना है!
मैं जानती थी, आपसे बॉर्डर न संभलने का, खैर शाम को घर पर आ रहे हैं ना?
हाँ, ज़रूर!मैं, मम्मी पापा और ब्रूनो सभी 5 बजे तक आ जाएंगे।
क्या ब्रूनो भी आया है, थैंक यू कैप्टन साहब, लव यू।
बाई
*
मम्मा …., सुना आपने ! ब्रूनो भी आ रहा है…ये ऐ ऐ, माय डार्लिंग, माय प्रिंस चार्मिंग हैज कम बैक।
अरे रे रे! इतनी बावली क्यों हो रही है, कुत्ता है! तेरी उससे शादी नहीं होने जा रही, ये बोल कि तुझे कुत्ते की नहीं, कुत्ते के मालिक का इंतज़ार था।
क्या मम्मा, आप भी ना, वी आर जस्ट फ्रेंड्स!
मुझे न समझा, माँ हूँ तेरी! ख़ूब समझती हूँ तेरी “जस्ट फ़्रेंड्स” वाली बात!
सच बता तुझे दिलीप, पसंद तो है ना!? अगर तू मना करेगी तो रहने देती हैं, ब्रिगेडियर साहब को मना कर दूँगी! कर दूँ??
मुझे बहुत काम है मम्मा, मैं चली!
तेरे गालों की लाली बता रही है कि तुझे कितना काम है! अच्छा सुन अगर तुझे तेरे काम से फुर्सत मिल जाये तो ज़रा तेरे पापा की शू भी पॉलिस कर देना, नहीं तो मैं तो कर हीं दूँगी!
*
क्या पापा, आप भी ना! हमेशा फँसा देते हो!
अब आपकी मिसेज को कौन समझाए कि मुझे कैप्टन से नहीं, आपके जैसे यूनिफॉर्म से मोहब्बत है, मुझे आपके जैसे डिसिप्लिन से मोहब्बत है, मुझे आपके जैसे देशभक्ति से मोहब्बत है, मुझे आपसे मोहब्बत है। आई लव यू डैड, आई लव यू ढ़ेर सारा!
अच्छा डैड, ये बताओ! दिलीप मुझसे प्यार तो करते हैं ना, वैसे हीं जैसे आप करते हो…………..?
दीपू उ उ! हो गया तेरा? जल्दी कर बेटा!
वो लोग अब आते हीं होंगे!!
हाँ माँ…, बस हो हीं गया।
*
….. अच्छा हुआ भाई साहब, जो दिलीप की पोस्टिंग सिविल एरिया में हो गई, कम से कम शादी के बाद,
ये दोनों कुछ टाइम तो साथ बिता पाएंगे! जब मेरी शादी हुई थी तब इनकी पोस्टिंग, बॉर्डर एरिया में थी, बस 10 दिनों की छुट्टी मिली थी, शादी के लिए।
शादी की दूसरी सुबह हीं इन्हें जाना पड़ा था।
ये तो बड़े गर्व की बात है भाभी जी, आप भी कम हिम्मती नहीं हैं, हों भी क्यों न, आप खुद भी तो सैनिकों के परिवार से हैं। लोग नाहक हीं कहते हैं कि सेना लड़ती है, जबकि असली लड़ाई तो उन सैनिकों के घर वाले लड़ रहे होते हैं, अपने सपनों से..अपनी जरूरतों से..अपनी भावनाओं से यहाँ तक कि खुद से भी।
हम जाबांजी से निश्चिंत हो इसलिये लड़ पाते हैं क्योंकि हमें पता हैं हमारे घरों पर आप जैसी वीरांगनायें है। दीपू में ये सारे गुण हैं, यही सब देखकर सोंचकर हमनें यह फैसला किया था कि हमारे घर की बहु अगर कोई बनने की योग्यता रखता है तो वो सिर्फ दीपू हीं है।
मैं क्या सोंच रहा हूँ भाभी जी कि इनकी शादी अगले महीने हीं करवा देते हैं। फिर ये जाने और इनका काम काम जाने।
उसके बाद हम तीनों बुजुर्ग निकल लेंगे अपने चार धामों की यात्रा पर (सबकी मिश्रित हँसी की आवाज़)
वो तो ठीक है भाई साहब, पर इतनी जल्दी… मेरा मतलब है, ये…ये तो हैं नहीं, अकेले मुझसे इतनी जल्द..मतलब, कैसे…कैसे होगा सब..कितनी तैयारी करनी होती है।
वो सब आप मुझपर छोड़ दीजिए भाभी जी, करना हीं क्या है, कुछेक लोगों को बुलाना है …पंडित आ गया, बस हो गई शादी।
*
ब्रूनो, माय चैम्प…आई लव यू बेबी, अहा! ये बिंदी तुमपर कितनी अच्छी लग रही है…
मम्मा देखो ना, ब्रूनो कितना क्यूट लग रहा है।
हाँ बहुत..सुन दीपू , अब ये सब बचपना छोड़।
थोड़ी बड़ी हो जा, कल तेरी शादी है और तू ब्रूनो में लगी है।
सॉरी मम्मा, पर ब्रूनो तो मेरा बेस्ट फ्रेंड है मम्मा…
ये सब मुझे नहीं पता.. पर तू एक बात गाँठ बाँध ले। शादी के बाद लड़की का बेस्ट फ्रेंड सिर्फ उसका पति होता है, और कोई नहीं। अगर तुझे अपने पति के दिल पर राज करना है तो उसके हर नख़रे उठाने पड़ेंगे, उसका ख्याल रखना होगा। ये नहीं कि जैसा अभी करती है, वैसे लक्षण शादी के बाद भी दिखाती रहना, कान खोलकर सुन ले, अगर तेरी एक भी शिकायत आई ना, तो मैं तुझसे कभी बात नहीं करूँगी, समझ लेना।
डोंट वरी माता जी, कोई शिकायत नहीं आयेगी। आप तो गलती करने के पहले हीं सुनाने लगते हो यार! पहले गलती करने तो दो…
अच्छा बाबा प्रॉमिस, कोई गलती नहीं होगी। अब तो खुश हो जा मेरी माँ, कल मेरी शादी है।
ऐसे…ऐसे विदा करेगी बेटी को, गुस्से में नीली-पीली होकर।
*
देख बेटा, वहाँ अच्छे से रहना। सबका कहना मानना, ज़्यादा उछल कूद मत करना, अब तेरी शादी हो गई है। लड़की की पायल में दो घरों की मर्यादा के स्वर गूँजते हैं, इसलिए संभल संभलकर चलना ।
पति की सेवा करना, उसकी इज्जत करना, वैसे हीं जैसे अपने पापा की करती हो।
उसकी हर ज़रूरत, हर खुशी का ख्याल रखना अब तुम्हारी ज़िम्मेदारी है।
देख बेटा! पति, अपनी पत्नी के लिए एक बच्चे के जैसा हीं होता है, उसे उसकी पसंद का खाना खिलाना, खुश रखना और कभी नाराज न होना हीं एक पत्नी का फ़र्ज़ है।
माँ…! आपका हो गया हो तो मेरी विदाई भी कर दो अब। अरे मैं इसी शहर में तो हूँ, कहीं दूर तो नहीं जा रही।
सही कहा दीपू, मम्मी जी! आप बिलकुल निश्चिंत रहें। मैं दीपू का बहुत खयाल रखूँगा, इसे कभी कोई चीज़ की कमी नहीं होने दूँगा, ये मेरा आपसे और मेजर साहब से वादा है। आप बिलकुल भी चिंता न करें।
*
अरे वाह!
पूरा कमरा फूलों से सजा है, कितनी प्यारी खुशबू है।
रजनीगंधा, अहा! कितना सुकून है इनमे।
पापा, आप सच कहते हो, रजनीगंधा के फूलों जैसा कोई फूल नहीं। जब भी इन फूलों को देखती हूँ
आपके व्यक्तित्व की भीनी खुशबू से महक उठती हूँ। आप तो जानते हो ना पापा, मैंने दिलीप से शादी क्यों की, ये मुझे आप जैसे लगते हैं, घनी घनी मूँछें, चौड़ा सीना, सीने पर चमकते मैडल, सबकुछ….सबकुछ आप जैसा हीं है पापा। जब भी दिलीप साथ होते हैं, लगता है जैसे आप खड़े हों!
अरे दीपू, क्या सोंच रही हो? कहीं मेरे ख्यालों में तो नहीं। अरे मैडम! ख्यालों से निकलो, देखो मैं हकीकत हूँ, तुम्हारे सामने खड़ा हूँ, यकीं न हो तो छूकर देख लो!
अरे नहीं, वैसा कुछ भी नहीं! आप कब आयें?
अरे वाह! इतनी इज़्ज़त तू से सीधा आप।
अगर मुझे पता होता कि शादी के बाद तुम मुझे इतनी इज़्ज़त देने लगोगी, तो मैं तो बचपन में हीं तुमसे शादी कर लेता (दिलीप और दीपू के हँसी की आवाज़)
दीपू! मैंने बचपन से तुम्हें और सिर्फ तुम्हें चाहा है। हर जगह हर मंदिर, हर गुरुद्वारे बस तुम्हें माँगा है। भगवान ने मेरी सुन ली। और देखो आज हमारी सुहागरात है!
सुहागरात, ये शब्द सुनते हीं दीपू का सिर पूरी तरह घूम गया, उसे बेहोशी सी छाने लगी, अब क्या होगा। जिस इंसान में पिता का प्रतिबिंब देखा, उस इंसान के साथ…. नहीं नहीं ये उससे नहीं होगा। उसने तो ऐसा कुछ सोंचा हीं नहीं था, उसने पति-पत्नी के रिश्ते को उस तरह कभी जाना हीं नहीं, जैसा होता है। उसने तो बस वही जाना जैसा उसने अपने मम्मी पापा को देखा था, जस्ट बेस्ट फ़्रेंड्स की तरह, साथ में हंसना बोलना, लड़ना, रूठना मनाना बस।
बस यही जानती थी वो, उसने तो सिर्फ एक घर देखा था, पर घर के उस कमरे में झाँककर कभी देखा ही नहीं जिसमे पति-पत्नी अपने अंतरंग पलों में साथ होते हैं।
दिलीप वो सब तो ठीक है… पर
पर क्या दीपू, क्या हुआ? तबियत तो ठीक है ना? रुको मैं दवा ला देता हूँ तुम ख़ाकर आराम से सो जाओ?
हाय, कितना केयरिंग है! बिल्कुल पापा की तरह।
*
हाई, गुड मॉर्निंग ,अब मैडम की तबीयत कैसी है? फीलिंग बेटर!?
हाँ, ठीक हीं है, बस सिर ज़रा भारी सा लग रहा है, पर आप चिंता न करो, शादी की थकान की वजह से…!
अरे आप तो फुल यूनिफार्म में हो, कितने बज गएं?
और आज से हीं ड्यूटी जॉइन कर लीजियेगा?
पूरे 9 बज चुके हैं मैडम, हम फौजियों की पहली पत्नी उसका फर्ज़ होता है, वैसे भी तुम कहाँ भागी जा रही हो, अब तो हमारा साथ ज़िंदगी भर का है!
वो तो है, पर मुझे जगाया क्यों नहीं!
मैं तुम्हें जगाना चाहता था, पर तुम सोती हुई इतनी प्यारी लग रही थी कि…..
वो सब मुझे नहीं पता, आपके चक्कर में,
मैं तो अपने पहले टास्क में हीं फैल हो गई ना।
माँ ने कहा था, ससुराल जाकर 11 बजे तक सोती मत रहना, सबसे पहले उठना और उठकर सबके लिए चाय-नाश्ता बनाना।
वो सब छोड़िये मैडम, और ये आपका ससुराल नहीं,
तुम्हारा घर है। अब जब जाग हीं गई हो तो जल्दी से जाकर तैयार हो जाओ। माँ ने नाश्ता तैयार कर दिया होगा।
*
सॉरी मम्मी जी! मेरी आँख हीं नहीं खुली, कल से प्रॉमिस मैं सबसे पहले उठ जाया करूँगी
ये सब किसने सिखाया? तुम्हारी मम्मी ने ना!
हाँ मम्मी जी, पर आप मम्मा से ये सब नहीं बोलना, नहीं तो वो मुझसे कभी बात नहीं करेंगी!
हट पगली, बच्ची है क्या! अरे मैं भी तो तेरी माँ हूँ। यही तो उम्र है तुमदोनो की, तुम्हें जल्दी उठने की कोई ज़रूरत नहीं, मैं हूँ ना! ये सब करने को,
डोन्ट वरी बेटा, आई कैन अंडरस्टैंड! नई-नई शादी होने पर जल्दी आँख नहीं खुलती,
कीप काम एंड …जल्दी से एक पोता दे दो बस!
लो इसे पकड़ो, ये चाय ले जा और उन बाप-बेटे को दे आओ और दिलीप से पूछना कि हमारी चारधामों वाली टिकट कन्फर्म हुई या नहीं?
अकेले में पूछना, अपने ससुर जी के सामने मत पूछना!
क्यों मम्मी जी, पापा जी के लिए सरप्राइज है क्या?
अरे बुद्धु, उनके सामने पूछेगी तो वो क्या सोंचेंगे? यही ना कि उनकी बहु को फूल डे प्राइवेसी चाहिए!
छि मम्मी जी, कैसी बातें करते हो आप!
ऐसा कुछ नहीं है। जाओ आप हीं पूछ लो, मुझे नहीं पूछना कुछ!
*
अरे आप ऑफिस से आ गये, इतनी ज़ल्दी
जी मैडम, बंदा आपकी खिदमत में हाज़िर है,
कहिये क्या हुक्म है मेरे आका?
दिलीप! सुबह मम्मी जी पूछ रही थीं कि उनकी टिकट कन्फर्म हुई या नहीं?
क्या बात है मैडम! आपको तो बड़ी ज़ल्दी है बुड्ढों को भगाने की। कहीं डर्बी की रेस देखने का इरादा तो नहीं!?
हाँ हो गई कन्फर्म, अगले महीने की 7 तारीख की हुई है, सुनो दीपू… पैकिंग में उनकी हेल्प कर देना प्लीज, और जिस चीज की कमी हो, मुझे पहले हीं बता देना ताकि मैं समय रहते वो सब लेता आऊं।
…और र र !
और क्या, बोलिये कैप्टन साहब, कुछ रह गया क्या?
वो …वो मैं कह रहा था कि… अब..हाँ.. हाँ अब तुम्हारे सिर का दर्द कैसा है?
फिलहाल तो ठीक है, पर रात का कुछ कह नहीं सकतें….. हा हा हा हा
*
दीपू …. सुनो तो, अरे हो गया बाबा.. सारे लोग सो गये, तुम अभी तक किचन में हीं हो.. क्या कर रही हो यार? कल के बर्तन भी आज हीं धो दोगी क्या! चलो ना! अब सोते हैं, प्लीज!!
आप जाओ, मैं बस अभी आती हूँ।
अरे….! अब जाइये भी, कोई देखेगा तो क्या सोंचेगा!
ठीक है, जाता हूँ, तुम ये सब खत्म करके थोडा ज़्यादा ज़ल्दी आना, प्लीज !
इन बर्तनों के अलावा इस घर मे तुम्हारा एक पति भी है, भूल मत जाना!
(कमरे में जाने के ख्याल से हीं, वो पूरी तरह काँपने लगती थी, उसे समझ नहीं आता कि वो करे तो क्या करें, कैसे टाले और कब तक टाले, तभी दीपू के मोबाइल की घंटी बज उठी, देखा तो दिलीप का कॉल था, वो चाह कर भी कॉल डिसकनेक्ट नहीं कर सकती थी, रिसीव करते हीं कहा :- “हाँ, हो गया, आ हीं रही हूँ”)
*
अरे मैडम, दूर क्यों बैठी हो, पास तो आओ!
दिलीप … सुनो तो, रुको … अरे! मेरी बात सुन लो पहले
बोलो मैडम जी, अब क्या है। अब भी करने को कुछ काम रह गया क्या?
नहीं…. वो..ओ ..रह नहीं गया, हो गया!
हो गया!
क्या हो गया?
आप नहीं समझोगे, ये लड़कियों वाली बात है।
अच्छा जी! समझ गया
सीधा कहो ना कि चार दिन का कर्फ़्यू लगा है।
हम्म्म्म! पर चार नहीं, पाँच
क्या? पाँच? जय हो!
ठीक है! सो जाओ फिर
(तकिये में मुँह छिपाये, वो सुबक रही थी, उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह करे तो क्या करे, वो जानती थी दिलीप अपनी जगह एकदम सही हैं और वो सरासर गलत, पर जब कभी भी वो दिलीप की ओर बढ़ती, दिलीप का चेहरा मेजर रणविजय यानी कि उसके पापा में बदल जाता, वो चाह कर भी न तो दिलीप के नज़दीक जा पाती और ना हीं अपने पापा को देखने के लोभ से खुद को रोक पाती।
वो करे तो क्या करे, उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। इसी उधेड़बुन में न जाने कब आँख लग गई, उसे पता भी न चला)
*
पाँच दिन तो जैसे तैसे निकल गये, अब वो क्या करेगी
कितने दिन टालेगी, कैसे टालेगी? यह सोंच हीं रही थी कि उसके कानों से एक बहुत जानी पहचानी आवाज़ टकराई, वो उसकी माँ की आवाज़ थी, किचन से बाहर निकलकर देखा तो उसकी माँ आई हुई थी।
शायद पगफेरो के लिए आई हो! उसकी आँखें चमक उठी, पास जाकर सुना तो उसे स्पष्ट हो गया कि वो एकदम सही थी, उसकी माँ उसे पगफेरो के रस्म के लिए हीं आई थी!
*
शाम के 7 बजने को आयें, पर दिलीप का अभी तक कुछ पता न था, उसकी नज़रें घड़ी की सुइयों से दरवाजे पर, फिर दरवाजे से घड़ी की सुइयों के बीच दौड़ रही थीं, उसे डर था कहीं ज़्यादा लेट होने पर माँ यहीं न रुक जाए, और अगर रुक गई तो…..
उसने दिलीप को कॉल लगाया!
हाई, कहाँ हो?
दरवाजे पर
थैंक गॉड, उसने ठंढी सांस ली।
*
अच्छा सुनो, अच्छे से रहना
सर दर्द की गोली तुम्हारे पर्स में रख दी है, ज़रूरी हो तब हीं खाना, और ज़ल्दी से आ जाना। तुम्हारे बिना मेरा मन नहीं लगेगा दीपू, तुम समझ रही हो ना!
आप कहो तो मैं जाती हीं नहीं, कहने दो लोगों को जो कहना है, ज़्यादा से ज़्यादा कोई क्या कह लेगा!!
अरे..अरे तुम तो चढ़ बैठी यार, मेरा वो मतलब नहीं था, बट तुम समझो न, इतनी नासमझ तो नहीं लगती
हा हा हा हा .. सब समझती हूँ सर,डोन्ट वरी, आई विल रिटर्न सून…. वेरी सून।
मोटरगाड़ी के खुलते हीं, आँखे बंद कर उसने एक गहरी ठंढी साँस ली, जैसे शेर की मांद से वापिस सकुशल लौट आई हो,
माँ वो पानी की बोतल देना ज़रा!
क्या हुआ दीपू? सब ठीक तो है ना
बेटा कोई बात हो तो बता, खबरदार जो मुझसे कुछ भी छिपाया, कोई बात है क्या, दिलीप तुम्हे टाइम तो देते हैं ना?
हाँ माँ सब ठीक है, तुम तो किसी भी बात का बतंगड़ बना देती हो। पापा सच कहते हैं, बाल की खाल निकालना तो कोई तुमसे सीखे।
मौसम नहीं देख रही, इस मौसम में सभी को कुछ ज़्यादा हीं प्यास लगती है, कितनी भी पानी पी लो, झट जज़्ब हो जाती है।
वैसे माँ, मुझे कितने दिनों के लिए लेकर जा रही हो?
क्यों? ये क्यों पूछ रही हो! घर जाने का मन नहीं तो ड्राइवर से कहकर गाड़ी घुमा लूँ क्या? तुम्हे वापिस वहीं छोड़ दूँगी?
अरे क्या माँ, तुम भी ना, कैसी बातें करती हो।
माना कि मुझे मेरे ससुराल में मन लग गया है पर रीति-रिवाज भी तो कोई चीज़ है, इसे तो निभाना ही पड़ेगा ना, बोलो ना, मैं कितने दिनों के लिए जा रही हूँ?
वाह मेरी, दीपू तो बड़ी हो गई, रश्मो-रिवाज की बातें करने लगी, पर अभी बकबक बंद कर, पहले घर तो पहुँचे।
*
(मायका आने के 16वें दिन, सुबह 9बजे)
गुड मॉर्निंग मम्मा,
क्या बात है, इतनी सारी डिशेज़, किसी को खाने पर बुलाया है क्या?
तू अभी तक शॉर्ट्स में हीं घूम रही है, जा और जाकर कुछ अच्छे कपड़े पहन लें, और बोल तो ऐसे रही है जैसे तुझे कुछ पता हीं नहीं!
क्या? क्या नहीं पता, बोलो तो…
अरे मुझे सच्ची नहीं पता, क्या बोल रहे हो मम्मा, बोलो ना! कौन आ रहा है?
अब इतनी भी नादान मत बन, जैसे तुझे कुछ पता ही नहीं,
आज दिलीप आ रहे हैं, तुझे लिवाने।
क्या? दी…दिलीप आ रहे हैं, मुझे वापिस ले जाने। पर आपने तो कहा था कि 15 दिनों की परमिशन मिली है, मुझे आये अभी दिन हीं कितने हुए हैं!
मम्मा मुझे इतनी जल्दी नहीं जाना
दीपू…! क्या हुआ बेटा? कोई बात है क्या? वो लोग तुझे ठीक से रखते तो हैं ना, दिलीप तुझे वक़्त तो देते हैं ना, कोई बात है तो बता बेटा, मैं तेरी माँ हूँ
सब अच्छे हैं मम्मा, बहुत अच्छे हैं, मम्मी जी, पाप जी, दिलीप सब.. सभी बहुत अच्छे हैं मम्मा, मुझे सारे लोग बहुत प्यार करते हैं, उतना जितना शायद आप भी नहीं करते होंगे।
तो प्रॉब्लम क्या है बेटा, जब सभी तुमसे प्यार करते हैं
तो
…..एक मिनट….एक मिनट, अब तू ये मत कहना कि तेरा किसी और के साथ अफेयर है, अगर ऐसा बोला ना, तो तेरा मुँह तोड़ दूँगी, तूने आजतक सिर्फ मेरा प्यार वाला रूप देखा है…..
स्टॉप इट मम्मा, वैसा कुछ भी नहीं है
तो फिर क्या बात है बेटा, कहीं वो…इम्पोटेंट तो नहीं
क्या बकवास कर रहे मम्मा, आई एम योर डॉटर..कुछ तो शर्म करो यार!
नो शर्म, अभी माँ-बेटी नहीं, दो औरतें बात कर रही हैं, बोल ना दीपू क्या बात है?
माँ.. वो .. वो मुझे छूना चाहता है
……तो? छुएगा नहीं तो क्या आरती उतारेगा, तुम भी ना दीपू, एकदम हद करती हो!
तेरी उसके साथ शादी हुई है बेटा, ये नेचुरल है, होता है.. सभी करतें हैं, दुनिया इसी से चलती है बेटा, बचपन की उन बातों को सच मत मान कि परियाँ आकर गोद मे बच्चा डाल जाती हैं। अच्छा ये बता अगर ये गलत है तो.. इस दुनिया में सभी गलत हैं, मैं गलत हूँ, तेरे पापा गलत हैं, इस दुनिया मे सब के सब गलत हैं।
आई नो मम्मा, मैं कोई बच्ची नहीं हूँ, आई नो इट आल, बट .. बट आई कांट मम्मा, अब मैं आपको कैसे समझाऊँ, बस ये समझो कि वो मुझे पापा जैसा दिखता है, उसमें मुझे मेरे पापा दिखते हैं मॉम… मेरे पापा।
दीपू लिसेन…..बेटा मेरी बात सुन
शुरूआत में कभी-कभी ऐसी दिक्कतें आती हैं, अपने आप को थोड़ा वक्त दो, सोंचो और समझो।
हर रिश्ते का अपना एक विशेष महत्व होता है, उस रिश्ते से जुड़े कुछ फर्ज़ होते हैं..कुछ जिम्मेदारियां होती हैं, कुछ अधिकार होते हैं, दिलीप तुमसे अपना अधिकार हीं तो माँग रहा है। माफ करना बेटा पर तुम यहाँ गलत हो, सरासर गलत हो। माना कि तुम्हारे पिता तुम्हारे आदर्श हैं, तुम्हारे हीरो हैं, हर पिता अपने बच्चे के आदर्श होता है, इसमें कुछ भी नया नहीं। मैं यह भी मानती हूँ कि हर लड़की अपने पिता जैसे पति की चाह रखती है, वह चाहती है कि उसका पति, उसके पिता जैसा हों, यहाँ तक तो सही है, पर सच मे पति के अंदर अपने पिता को देखना.. ये क्या बात हुई? तुम्हारा ये लॉजिक मुझे बिल्कुल भी समझ नहीं आता दीपू, पिता पिता होता है और पति “पति”, बेहतर है जितनी जल्दी इस बात को समझ लो, इसमें हीं मेरी, तुम्हारी, दिलीप की, तुम्हारे पिता की, हमसब की भलाई है। तुम्हे यह समझना चाहिए, समझना क्या है, तुम्हे ये समझना होगा! तुम सुन रही हो ना मैं क्या कह रही हूँ “तुम्हें समझना पड़ेगा।” चाहे हँस कर समझ या रोकर पर तुझे दिलीप को अपने पति के तौर पर उसके सारे अधिकार देने हैं… तो देने हैं बस, हो गया फैसला। अब इसपर कोई बात नहीं होगी। जा और जाकर अच्छे से तैयार हो जा। मुझे तुझसे अब और कुछ नहीं सुनना
मैं जानती हूँ मॉम, आप सही हो,दिलीप भी सही है। पर मैं भी गलत नहीं हूँ मॉम..मैं भी गलत नहीं हूँ!
मैं….मैं क्या करूँ मॉम ,मैं आपको कैसे समझाऊँ । मुझे उसमें पापा दिखते हैं। पति नहीं दिखता, तो मैं क्या करूँ।
मैंने खुद को समझाने की बहुत कोशिश की मॉम…बहुत कोशिश की, हर तरीके से खुद को समझाया, पर नहीं जाती माँ… पापा की यादें नहीं जातीं, उनका चेहरा नहीं भूलता मुझे..जब भी वो प्यार से मेरे बालों में उंगलियां फिराता है, मेरा सिर दबाता है, मुझे ऐसा लगता है जैसे उसमें मेरे पापा आ गये हो, जैसे, वो वो नहीं, उसमें मेरे पापा आ गये हों। जब मेरी तबीयत खराब होती है वो वैसे हीं परेशान होता है जैसे पापा परेशान होते थे। उसकी हर बात में, चलने में..उठने में..बैठने में..बोलने में मुझे पापा दिखते हैं, मुझे उसमें पापा दिखते हैं.. मुझे उसमें पापा दिखते हैं, मैं क्या करूँ।तुम समझ रही हो ना माँ, मैं क्या कहना चाहती हूँ, तुम समझ रही हो ना?
मैं जानती हूँ तुम सही हो, पर अब नहीं होगा मुझसे… नहीं होगा। उसे कब तक रोकूँगी, कैसे रोकूँगी ।
जब वो गलत हीं नहीं तो रोकूँ भी तो क्यों रोकूँ। पर मैं बर्दाश्त नहीं कर पाऊँगी मॉम, मैं मर जाऊँगी पर उस आदमी को जिसे मैं अपना भगवान मानती हूँ, अपने पापा जैसा पूजती हूँ। उस शख्स को उस नज़र से कैसे देखूँ? उस पवित्र काया से खुद को छूकर, अपवित्र कैसे होने दे सकती हूँ.. मैं ऐसा होने नहीं दे सकती मॉम… मैं ऐसा नहीं कर पाऊँगी। अगर कभी ऐसा हो गया फिर मैं पापा से नज़रे कैसे मिलाउंगी, नहीं.. नहीं। इससे अच्छा तो होता कि मैं मर जाती मॉम, मैं मर जाती। आई कैन्ट हैंडल दिस एनीमोर…. आई कैन्ट हैंडल दिस मॉम
ये सब बकवास बंद कर और मेरी बात ध्यान से सुन “तेरे पिता की खुशी भी इसी में होती कि तुम अपनी जिंदगी पूरे जोश में अच्छे से जीओ, ये नहीं कि उनकी याद में घुट घुट कर मर जाओ। अपने फ़र्ज़ के लिए अपनी शहादत देने वाले पिता की बेटी इतनी कामजोर नहीं हो सकती, तुम्हे खुद को कमजोर दिखा कर उन्हें दुःखी नहीं करना चाहिए।
अब चल मेरे साथ, मैं तुझे तैयार कर देती हूँ।
तू खुद सोंच ना, क्या अपनी जिम्मेदारियों से मुँह मोड़कर तू मर भी जाती है तो क्या तू अपने पापा से नज़रें मिला सकेगी? नहीं ना, तो खुद को मजबूत बना मेरी बच्ची, खुद को मजबूत बना।
आप सही कहते हो माँ, मैं पापा का नाम खराब नहीं होने दे सकती, मैं अपने पापा की शेरनी हूँ, मैं हार नहीं मानूँगी माँ, मैं खुद से लड़ूँगी, अपने पापा के लिए.. उनकी इज्जत के लिए।
माँ, क्या मैं पाप की यूनिफॉर्म अपने साथ ले जा सकती हूँ। प्लीज माँ प्लीज।
*
दिलीप , मेरी एक बात मानोगे?
अरे बोलो ना दीपू, इसमें पूछने वाली कौन सी बात है! मैंने तो फेरे हीं तुम्हारी बात मानने को ली है। जैसे अब तक सारी बात मानता आया हूँ, तुम्हारी मनमानी सहता आया हूँ, यह भी सह लूँगा।
अरे अरे, अब सीरियस न हो जाओ, मैं तो मज़ाक कर रहा था, बोलो! कौन सी बात मनवानी है??
तुम मेजर कबतक बन जाओगे?
क्या? मेजर, मैडम अभी मैं कैप्टन हूँ, मेजर बनने में अभी बहुत टाइम है मैडम! क्यों क्या हुआ, कहीं मन्नत-वन्नत तो नहीं ले लिया कि मेरे मेजर बनने तक मुझे ब्रह्मचारी बनाये रखोगी?? ऐसा नहीं करना मैडम
और अगर मैं ये कहूँ की कुछ ऐसा हीं है, तब??
मार दो, एक ही बार मे मार दो, यों तिल-तिल कर मरने से तो अच्छा है कि एक हीं पल में मुक्ति।
लगता है, मैं नहीं थी तो फिल्में ज़्यादा देख रहे थे तुम!
अब तुम्हें क्या बताऊँ, तुम नहीं थी तो……
खैर ये सब छोड़ो, पहले ये बताओ क्या कह रही थी तुम??
दिलीप मैं वो कहना चाह रही थी कि मुझे पापा की बहुत याद आ रही है, सबसे ज़्यादा, अपनी शादी के वक़्त। पापा होतें तो कितना अच्छा होता ना!?
हाँ होता तो, पर अब इसमें कर भी क्या सकते हैं, पर तुम्हें यह भूलना नहीं चाहिए कि वो एक सैनिक थें, एक सैनिक के लिए इससे खूबसूरत मौत नहीं हो सकती कि वो देश की रक्षा करते करते अपने प्राण न्योछावर कर दे। खुद सोंचो ना देश मे कितने लोग हैं। कितने लोगों को तिरंगे में लिपटना नसीब होता है? ऐसी खूबसूरत मौत पर तो सौ जिंदगियाँ कुर्बान।
वैसे एक बात बोलूं दीपू?
हाँ बोलो ना, तुम्हीं को तो सुन रही हूँ, तुम ये सब बोलते हुए न पापा जैसे लगते हो, वो भी यही कहते थें, हमेशा मुझे देशभक्ति की कहानियां सुनाया करते थें, मैं तब से चाहती थी कि मेरा पति भी मेरे पापा के जैसे साहसी और देशभक्त हो….वैसा हो जिसमें बल हो…पौरूष हो…
और देखो दीपू, भगवान ने तुम्हारी सुन ली, और तुम्हें मैं मिल गया, है ना?
हम्म्म्म, पता नहीं! साहसी हो भी या सिर्फ डींगें मारते रहते हो!
क्यों मैडम कोई शक है क्या? तुम कहो तो अभी के अभी साबित कर दूँ क्या??
अरे नहीं …नहीं, हटो भी।
अच्छा सुनो, मेरी एक बात मानोगे? पापा की यूनिफॉर्म लाई हूँ , मुझे पहनकर दिखाओगे क्या?
पागल हो गई हो क्या? तुम्हारा दिमाग तो ठीक है, वो परमवीर चक्र, दो अतिविशिष्ट सेवा मेडल शहीद रणविजय सिंह की यूनिफार्म है, मैं उस काबिल नहीं कि वो यूनिफॉर्म पहन सकूँ, ये मैं नहीं कर सकता..ये मैं कभी नहीं करूँगा।
दीपू मैं देख रहा हूँ, हमारी शादी को महीना होने को आया पर….तुम हमेशा इधर उधर की बातें करके मुझे हमेशा टालती क्यों रहती हो, कहीं ऐसा तो नहीं कि तुम मुझे पसंद ही नहीं करती, तुम्हारे मन में कोई और है? अगर ऐसा है तो बोल दो, मैं तुम्हारे रास्ते से हट जाऊँगा
नहीं दिलीप ऐसा कुछ नहीं हैं, अब ऐसा बोलकर मुझपर लांछन तो न लगाओ
न लगाऊं, क्यों न लगाऊं!? अगर ऐसा नहीं है तो .. तो तुम मुझे अपनाती क्यों नहीं, मैं कोई बच्चा नहीं, जिसे तुम गोली देती रहो और मैं तुम्हारी हर बात को मानता रहूँ।
अरे यार मैं भी इंसान हूँ, मेरे भी कुछ अरमान हैं..कुछ सपने हैं।
क्या हो गया तुम्हें, अभी अभी तो ठीक थे, यकायक ऐसे क्यों बिहेव करने लगे?
नहीं ..मैं ठीक नहीं हूँ, मेरा हीं दिमाग खराब है और जो तुम कर रही हो वो ..वो सब ठीक है, जस्टीफ़ाइड है! क्यों?
मुझे थोड़ा वक्त दो दिलीप, मुझे एडजस्ट होने में थोड़ा टाइम और चाहिए
और टाइम..? और कितना वक्त चाहिए तुम्हे मुझे अपना पति स्वीकार करने के लिए। कहती क्यों नहीं कि मेरे पीठ पीछे अपने आशिक़ से अपनी सारी ज़रूरतें पूरी कर लेती हो… पीठ पीछे क्यों सामने करो, कौन मना करता है। बुलाओ बुलाओ उसे. अभी बुलाओ.. आज फैसला हो हीं जाए।
बुलाऊँ! किसे बुलाऊँ? जब कोई है हीं नहीं तो किसे बुलाऊँ, बोलो तो अग्निपरीक्षा दे दूँ, हो जाऊं स्वाहा! तब यकीन होगा तुम्हें… तब तो मानोगे मेरी बात!?
आदर्शवादी बात करके खुद को सही और मुझको गलत साबित करने की कोशिश मत करो दीपू, अगर कोई है हीं नहीं, तो तुम मेरी क्यों नहीं हो जाती, दिक्कत क्या है तुम्हे??? क्या तुम्हें मैं पसंद नहीं.. मुझमें कोई कमी है..क्या मैं तुमसे प्यार नहीं करता??
सब करते हो दिलीप..तुम बहुत अच्छे हो, मैं तुमसे प्यार ही नहीं, तुम्हारी पूजा करती हूँ….
तो तुम इसे साबित क्यों नहीं करती, आओ साबित करो, अपनाओ मुझे..आगे बढ़ो.. क्यों क्या हुआ? तुम्हारे पैर क्यों कांप रहे हैं।
नहीं दिलीप .. तुम नहीं समझ रहे
अब मुझे कुछ नहीं समझना, आज मैं तुम्हे अपना बनाकर रहूँगा चाहे जो हो जाये
नहीं दिलीप, आगे नहीं बढ़ना, रुक जाओ दिलीप
वहीं रुक जाओ
आज मैं तुम्हारी कोई बात नहीं सुनूँगा आज तुम्हारी कोई मनमानी नहीं चलेगी, आज जो होगा वो मेरी मर्जी का होगा।
नहीं दिलीप नहीं….
अब भी वक़्त है, बोलो …बोलो मुझे कौन है वो…कौन है वो
दिलीप आवेग में दीपू की गर्दन दबाये उससे बार बार यही सवाल कर रहा था, अपने पुरुषार्थ पर लगे प्रश्नचिह्न से वो इतना विचलित हो चुका था कि उसे यह ध्यान हीं न था कि उसने दीपू की गर्दन दबा रखी है
दीपू की आँखों से आँसू निकल रहे थें, पर यह उसके अपनी ज़िंदगी हार जाने के आँसू नहीं थें, उसे दिलीप में अब भी अपने पिता दिख रहे थें, उसे लग रहा था, उसके पिता उसे कष्टमुक्त करने आये हैं।
वो धीरे धीरे मर रही थी, अपने पिता के पास जा रही थी
….हमेशा के लिए…हमेशा हमेशा के लिए
रचना की तिथि- 05-04-2020