डीजे।
भारत में शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति हो जो डीजे नामक असुर के प्रकोप से बचा हो। हर शुभ कार्य में इस राक्षस की सम्माननीय उपस्थिति अनिवार्य है। हर शोभा यात्रा, हर जुलूस का साज सिंगार , चमक उसकी धमक के बिना फीकी लगती है। जैसे कि बाग के सारे फूलों के रंग बुझ गए हों , इसके आने के पश्चात ही उनकी चमक और सुगंध का अहसास होता है।
यह दैत्य जब सड़कों से गुजरता है तब घर की दीवारें , खिड़कियां , उनमें लगे कांच आदि सब थरथराने लगते हैं। ह्रदय की धड़कन बढ़ जाती है। कानों को दबा कर रखना पड़ता है। यह जानते हुए भी कि वह घर में नहीं घुस सकता तब तक मन भयभीत रहता है जबतक उसकी आवाज धीमी नहीं हो जाती।
मुझे उन अधेड़ , उन नवयुवकों पर बिल्कुल तरस नहीं आता जो उसके पीछे शान से चलते हैं , इधर उधर गर्व से देखते हैं , सामने नाचते उछलते कूदते हैं। वे बुढ़ापे में हियरिंग एड बनाने वाली कंपनियों की बिक्री बढ़ाने में अच्छा खासा योगदान करने वाले हैं इस प्रकार वे भारतीय अर्थव्यवस्था में अपना योगदान देंगे।
मुझे चिंता उन बारह , चौदह वर्ष के बच्चों तथा विशेष कर मैरिज हाल में तीन , चार साल के बच्चों के लिए होती है जो डीजे के सामने खुशियां मनाते हैं। इन बच्चों के बाकी अंगों पर जो दुष्प्रभाव पड़ता होगा उसकी बात छोड़िए पर उनके सुनने की क्षमता कितनी प्रभावित होती है इसका अंदाजा लगाना बहुत मुश्किल नहीं है।
कवि लोग रूपक के रूप में बहरी दुनियां की बाते करते हैं। हम लोग सचमुच में एक बहरी दुनियां का निर्माण जानबूझकर कर रहे हैं।
एक समय ऐसा आएगा जब ज्यादातर लोग आपको इशारों में ही बात करते दिखाई पड़ेंगे।
तब तक डीजे का कान फाड़ू , दिवाल तोड़ू संगीत के सागर में गोते लगाते रहिए।
Kumar Kalhans