डियर दीपू
डियर दीपू
पगली सी हो तुम
और थोड़ी नासमझ भी
तुम्हें नहीं पता
मेरी जिंदगी की सारी खुशियां
कभी तुम्हें सताने से है
तो कभी तुम्हे मनाने से है
कभी झगड़ा करने से है
तो कभी सीने से लगाने से है
मैं जानता हूं
तुम्हें लगता होगा
की मेरे पास वक्त नहीं तुम्हारे लिए
या मुझे अकेले रहना ज्यादा पसंद है
पर सच कहूं तो मुझे भी
तुम्हारे बिना जीना
कहां अच्छा लगता है
डियर दीपू…..
तुम्हारे नाक में बूंदी
ललाट के बीच
वो छोटी सी बिंदी
और होठों के नीचे जो काला तिल है ना
उसे देख कर ही तुमसे दूर होने का गम
थोड़ा कम हो जाता है
और तुमसे मिलने की बेचैनी
थोड़ी बढ़ सी जाती है।