डाॅ०श्री रंजन सुरिदेव जी को नमन
करता हूँ अर्पण स्नेहसुमन।
करके मन से स्मरण।।
शोक संलिप्त है आज पुन:साहित्य लोक।
देखकर यह महाप्रयाण को परलोक।।
आज हो गये जो फिर से विलोपित।
काल ने कर लिया जो एक ओर ज्ञानतारा ग्रसित ।।