” डर “
सांय – सांय सर्द हवा के साथ बारिश भी झमाझम हो रही थी महक को महसूस हुआ की मोहन ( सहायक ) की गलती से कहीं की खिड़की खुली रह गई है । मोहन… मोहन महक ने आवाज लगाई लेकिन कोई जवाब नही आया जरूर कहीं कोने अतरे में घुस कर कनटोपा लगा कर गाना गा रहा होगा , कितनी बार कहा है की यहीं मेरे आसपास रहा कर लेकिन ये सुने तब ना गुस्से में बड़बड़ाती महक खिड़की बंद करने लगी लगा जैसे जम ही जायेगी…. खिड़की बंद होते ही बारिश का शोर कम हो गया… हे भगवान ! मेरे अलावा और कौन है इस कमरे में ये किसकी सांस की आवाज आ रही है ? डर कर महक ने आवाज लगाई…कौन..कौन है यहाँ ? कोई उत्तर नही आया महक ने अपनी सांस रोक ली शायद उसे लगे की जो था वो चला गया लेकिन ये क्या उसने भी रोक ली उसको कैसे पता चला की मैं सांस रोक रही हूँ ? अब महक को सच में डर लगने लगा साथ ही मोहन पर और भी ज्यादा गुस्सा आने लगा फिर जैसे ही उसने सांस छोड़ी फिर से दूसरी तरफ से भी सांस की आवाज आने लगी महक को काटो तो खून नही , उसने फिर से सांस रोक ली उधर से भी आवाज आनी बंद हो गई इस बार जैसे ही उसने सांस छोड़ी और दूसरी सांस की आवाज सुनकर खूब जोर – जोर से हँसने लगी । ये दूसरी आवाज भी उसकी ही थी महक को अस्थमा है और ठंड के दिनों में सांस ले कर छोड़ते वक्त गले से हल्की सी सीटी जैसी आवाज आती है , अंदर कमरे में जाकर भी महक की हँसी रोके नही रूक रही थी बहुत दिनों के बाद आज इतना खुल कर हँसी थी महक ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 07/09/2020 )