डर सताता है क्यूं
रात को ख्वाब में आई बेटी मेरी
मुझसे करने लगी दर्द अपना बयां ।
ऐसा होता है क्यूं, राह चलने में यूं।
रास्ते में अकेले निकलते हुए डर सताता है क्यूं,
मां मुझे तू बता,
क्या है मेरी खता।
पूछती है हवा यह जमीं ,आसमां,
घर की दीवार दर, ऊंचे पर्वत शिखर।
ए जमाने मुझे यह हकीकत बता।
दोष मेरा है क्या जो मसल यूं दिया।
फूल बन न सकी अधखिली सी कली ।
ममता के पालने में सदा जो पली।
आज किस्मत से आकर गई है छली।
हाय बहशी दरिंदों कुचल क्यों दिया।
तन था पूरा ढका , नग्न भी न था मां।
नौंच डाला बदन दर्द भी न लगा।
दर्द होता है क्या , यह इन्हें क्या पता।
डर सताता है क्यूं क्या है मेरी खता।
हाथ भी जोड़े थे , की थी मिन्नत बड़ी,
वास्ता भी दिया ,घर की मां बेटी का।
किंतु अहसास तो तनिक न किया।
मेरे रोने का कुछ भी फर्क न पड़ा।
बेटी होने की तुझको मिलेगी सजा।
डर सताता है क्यूं , क्या है मेरी खता।
जा रही हूं मैं मां,दूर तुझसे और सबसे सदा के लिए।
एक संदेश मेरा जहां के लिए,
वहशी इंसान और मूक दर्शक हैं जो उन सभी के लिए।
बेटियां जीत हैं, बेटियां मीत हैं।
बेटियां साज हैं, बेटियां गीत है।
बेटियों के गर्भ में ही पलता सृजन,
बेटियों से ही रेखा प्रलय है सदा।
डर सताता है क्यूं , मां मुझे तू बता।