डर टपकले का
रामकुमार और छैलू दो भाई,
प्रजापति/कुम्हार कच्ची मिट्टी के बरतन बनाने का काम करते थे,
बाहर कच्ची मिट्टी के बर्तन खुले आसमान में चांदनी तारों भरी रात में एक सुंदर अद्भुत सौंदर्य को देखकर दोनों भाई मंत्रमुग्ध.
अचानक मौसम बिगड गया.
चक्रवाती हवाओं ने दस्तक की.
दोनों भाईयों ने घटना से बचने और बर्तन की रक्षा के लिए प्रयास किया.
आखरी बरसात से भीगे हुए,
अपनी छोपडी में जा घुसे.
वहां एक वृद्ध शेर भी, खराब मौसम के कारणवश आकर झोपडी के कोने में छुप गया,
दोनों तरफ डली चारपाई पर लेटकर बातें करने लगे.
अक्सर पशु मनुष्य की भाषा से अनभिज्ञ रहते है.
मगर वे तहजीब भाँप लेते हैं,
दोनों भाई बतियाने लगे.
भाई शेर का भी खौफ नहीं है.
लेकिन इस टपकले से बहुत डर लगता है, शेर ऐसा सुनकर हवा हवाई हो गया.
सच में धंधे को नुकसानदेह साबित होने वाली घटनाओं से मजदूर किसान बहुत खौफ खाता है.
*ठपकल मतलब रिसते हुए पानी की बूंदें