डमरू घनाक्षरी
मित्रों,सादर समर्पित है
डमरू घनाक्षरी
घनन घनन घन, गरज गरज कर।
बरस बरस कर,रह रह तड़कत।
तडप तडप तड़, चमकत दमकत।
ठहर ठहर कर,रह रह बरसत।
लखत लखत जब,बचपन दरशत।
चमक चमक घन, रह रह तड़पत।
नद भरभर कर,जम कर बरसत
लहर लहर कर, तट अब भड़कत।
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, “प्रेम”