डगर जिंदगी की
जिंदगी की राहों में
कभी पत्थरों की डगर बन जाती है
दर्द होता है दिल में इतना कि
आंसुओं से सैलाब बन जाती है
कब होते हैं आंसू दर्द के बगैर
आखिर सागर में भी तूफान लहरों से उठता है
वार खंजर के भी सह लेता कभी
मगर मीठी हंसी बात की दिल में घर कर जाती है
समा की चाहत में जल उठता है मासूम पतंगा
की जिंदगी की जरा सी भूल
जीवन का अंगार बन जाती है
जरा सी गलतफहमी भी तोड़ देती है रिश्तो को
अगर खत्म ना हो कटीली झाड़ियां तो नासूर पेड़ बन जाते हैं
बन जाता है
सारा जमाना दगाबाज
कभी धोखा खाकर किसी से ऐसी नजर बन जाती है