ठूंठा पेड
वह जिसे तुम
ठूंठ कहते हो
शायद उचित कहते हो
वह था एक सलोना पेड़
ऋतुराज में सौरस पूर्ण
सम्पूर्णता में बौर से लदा
वह विहग और वह मधुप
फिर मधुर संलाप उसका-
प्रदर्शन आत्मीयता का
कर गया निस्पंद उसको ।
शीतल छाँह का अपरिमित विस्तार-
मरहम जो प्रत्येक दग्ध हृदय का था
बैठा उसकी क्रोड़ जा हर लम्बी यात्रोपरांत, श्रद्धेय कोटि में रखा जिसे भी
हर बार चतुराई दिखाई गई है।
उसी ने एक-एक कर काटी-
सभी शखाएं
बचपन जिसका हुआ पल्लवित
उसी के आम खाकर
सब कुछ सहता
वह मौन रहता
यही सोचता
कि कहता
आत्मीयता के कर्ज का
फिर उल्लंघन होता।
आज भी मानव संवेदना युक्त
स्वर सुनाई देता है उसके अंतस से
बाह्याकार जीवन अनुभव उसका
अंतस उसकी प्रकृति
अध्ययन के लिए अपेक्षित है गहन पैठ अपेक्षित है साधना वर्षों की
इसलिए आप जो ठूंठ कहते हैं
शायद उचित कहते हैं ।
12. विचार
जीवन को उत्तुंग शिखर पर
तुम ही लेकर जाते हो
मन मस्तिष्क पर हो आरूढ़
तुम इतिहास नया रच जाते हो
दुर्योधन के मन उपजे
महाविनाश के सृजक बने
दशानन की कर मति मालीन
भीषण युद्ध तुमने कर डाला
वाल्मीकि के मन उपजे
रामायण का अवतरण हुआ
तुलसी संग होकर तुमने
रामचरित को रच डाला
तुमसे ही सुत हुए अधर्मी
मां को घर से धकेल दिया
तुमसे ही प्रेरित होकर
गीता का उपदेश हुआ
वेद व्यास ने संग तुम्हारे
अमर काव्य निर्माण किया
तुमने साथ निभाया उसका
तब वह हुआ आतंकी है
सैनिक में सोच तुम्ही बने
भारत मां की खातिर वह
देश हित कुर्बान हुआ
भागीरथ की बन कठिन साधना
गंगा को ले आते हो
जीवन को उत्तुंग शिखर पर
तुम ही लेकर जाते हो ।।