ठंडे गांव
आज क्यों मरहम लगा दी घाव में।
क्या कमी रह गई थी कोई दांव में।।
तैरना सीखेगा कैसे तू बता।
बैठ जाता तू हमेशा नाव में।।
सब शहर में आ बसे हैं धूप के।
कौन बसता बोल ठंडे गांव में।
हमको चेहरे से नहीं पहचानिए।
हैं बहुत छाले हमारे पाँव में।
खूब कोयल तुम बने फिरते रहे।
है छुपी सच्चाई तेरी कांव में।
“बेशरम” पागल हुआ तेरे लिये।
और तू मिलता नहीं हो ठाँव में।।
विजय “बेशर्म”
गाडरवारा मप्र