ट्रस्टीशिप की भावना और सी.एस.आर. की योजना
ट्रस्टीशिप की भावना और सी.एस.आर. की योजना
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सीएसआर अर्थात कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी अर्थात कारपोरेट सामाजिक जिम्मेदारी । जिन कंपनियों की आमदनी प्रतिवर्ष पाँच करोड़ रुपये से अधिक है ,उन पर 2% की दर से सामाजिक कार्यों में धन खर्च करने की जिम्मेदारी सरकार ने सौंपी है ।
यह एक बहुत ही प्रशंसनीय कदम है और इसकी जितनी सराहना की जाए कम है। उद्योगपतियों को सी एस आर के माध्यम से समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का एहसास कराना इस योजना का मुख्य उद्देश्य है । केवल 2% खर्च करना पर्याप्त नहीं है। मंशा यह नहीं है कि उद्योगपति 2% टैक्स समझ कर खर्च करें । मंशा यह है कि उद्योगपति अपनी आमदनी का 2% हिस्सा सामाजिक उत्तरदायित्व की भावना से समाज के ऊपर खर्च करें । वह महसूस करें कि समाज में कितना पिछड़ापन है, लोगों में सार्वजनिक ढांचे को मजबूत बनाने के लिए कितनी अधिक धनराशि की आवश्यकता है। गरीबी, बेरोजगारी, शिक्षा और स्वास्थ्य आदि क्षेत्रों में भारी कमी देश में सब जगह देखने में आती है । उद्योगपति तो समृद्ध होते हैं। वे महलनुमा कोठियों में रहते हैं । उन्हें धन की कमी का कोई एहसास नहीं होता। लेकिन यह 2% धनराशि सीएसआर के रूप में खर्च करने की अनिवार्यता इसलिए लागू की गई ताकि उद्योगपतियों को महसूस हो कि उनके घर की चारदीवारी के बाहर मीलों दूर तक गरीबी का साम्राज्य और अभाव की स्थिति फैली हुई है ।उनके हृदय में यह भाव आए कि उनका धन केवल उनके लिए नहीं है बल्कि समाज के लिए है।
बस यहीं से सीएसआर की वास्तविक शिक्षा आरंभ हो जाती है। इनकम टैक्स की दर बढ़ा देते हैं ,तो यह जो सामाजिक जिम्मेदारी का भाव पैदा करने की बात है वह उत्पन्न नहीं होती। देखा जाए तो सरकार के पास जो इनकम टैक्स का पैसा पहुंचता है वह भी समाज के लिए ही खर्च होता है। लेकिन सीधे-सीधे उद्योगपति को यह एहसास करा देना कि उसका पैसा समाज के लिए उसके पास एक अमानत है ,यह एक बहुत बड़ा भाव बोध है। इसी को गांधी जी ने ट्रस्टीशिप का सिद्धांत कहा ।
यह कि उद्योगपति के पास जो उद्योग धंधा है, जो पूंजी है और उसका नफा होता है उसमें से अपनी जरूरत के मुताबिक पैसा वह अपने पास रखे और शेष धनराशि को समाज को वापस लौटा दे। वास्तव में समाज के सक्रिय योगदान से ही कोई व्यापारी और उद्योगपति धन कमाता है इस नाते वह समाज का ऋणी होता है और उस ऋण को सीएसआर के माध्यम से वापस लौटाना कर्तव्य का निर्वहन ही कहा जा सकता है ।
धीरे-धीरे सीएसआर की प्रतिशत हम दो से बढ़ाकर 50% तक ला सकते हैं और हमें लाना भी चाहिए। लेकिन इसके लिए इनकम टैक्स पूरी तरह समाप्त करना होगा और उद्योग पतियों की सामाजिक जिम्मेदारियों को सीधे-सीधे उनके द्वारा वहन करने की प्रवृत्ति समाज में जागृत हो सके ,इस दिशा में काम करना होगा। वर्तमान में जहां एक ओर सी एस आर के अंतर्गत बहुत उत्साहवर्धक कार्य हो रहे हैं ,वहीं दुर्भाग्य से कुछ उद्योगपति 2% सीएसआर की धनराशि भी खर्च नहीं करना चाहते और ईमानदारी से इस दिशा में काम करने में वह बाधक बने हुए हैं। यह प्रवृत्ति बदलनी होगी और उद्योगों को सामाजिक जिम्मेदारियों का अहसास कराना ही होगा।
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लेखक: रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा ,रामपुर (उत्तर प्रदेश) मोबाइल 99976 15451