टैम नहीं है
“अरे काकी, इतनी जल्दबाजी में कहाँ जा रही हो? आओ,एक कप चाय पी लो।” नेहा ने कहा।
“कहीं नहीं बिटिया,बस दुकान तक जा रही हूँ,थोड़ा सामान लाना है। अभी टैम नहीं है,फिर कभी आकर बैठूँगी,तब चाय पिऊँगी।”यह कहते हुए रमा काकी रुक गईं।
नेहा ने कहा, “काकी सुना है आजकल आपकी बड़की बहू मायके गई हुई है।अब तो आपको आराम होगा।छुटकी बहू खूब सेवा कर रही होगी।”
“नहीं बिटिया, वह तो दिन भर फोन पर ही लगी रहती है।पता नहीं, मायके वालों से क्या गुर सीखती रहती है।जब तक बड़की बहू थी तब तक तो मेरा ध्यान ही इसकी तरफ नहीं जाता था।उसी से दिन भर खटर पटर होती रहती थी।अब समझ में आ रहा है,यह भी कुछ कम नहीं है उससे।”
नेहा समझ गई रमा काकी अब पूरी तरह बात करने के मूड में हैं।उसने रमा काकी को छेड़ते हुए कहा, काकी सुना है ,आपके पड़ोस वाले गुप्ता जी बड़ी बेटी …..
“कुछ न पूछो बिटिया,जो सुना है वह ठीक ही है। मैं तो रोज़ देखती हूँ।सुबह नौ बजे बैग लटकाकर निकल जाती है और दिन ढले वापस आती है। पता नहीं आफिस में ऐसा कौन-सा काम करती है जो पूरा दिन वही निकल जाता है। उसके बाप को भी तो सोचना चाहिए कि बिटिया जवान हो गई है उसकी शादी करके अपने घर विदा करें।जब माँ-बाप ध्यान नहीं देंगे तो बच्चे तो उसका फायदा उठाएँगे ही।”
“अरे काकी, क्या बात कर रही हो? ये बात सही है क्या?”
“दुलहिन, हम बिल्कुल सही कह रहे हैं। हम तो रोज देखते हैं। हम तो अपने दरवाजे पर कुर्सी पर बैठे-बैठे सब देखते रहते हैं? हमने भी दुनिया देखी है।उड़ती चिड़िया के पर गिन लेती हूँ। तुमसे झूठ काहे बोलेंगे।”
इसी बीच नेहा ने अपने कमरे की सामने की दीवार पर लगी घड़ी की ओर देखा तो पता चला कि रमा काकी पिछले डेढ़ घंटे से प्रपंच कर रही हैं ।कह रही थीं कि टैम नहीं है।तभी रमा काकी का ध्यान भी सामने लगी घड़ी पर गया और बोली बिटिया, बहुत देर हो गई फिर कभी आऊँगी तो आराम से बात करूँगी,अभी चलती हूँ।
डाॅ बिपिन पाण्डेय