Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
24 Mar 2022 · 2 min read

टिकट नहीं रहा(हास्य कथा)

टिकट नहीं रहा(हास्य कथा)
**********************************
टेलीफोन पर जैसे ही नेताजी ने सुना, उधर से आवाज आई थी” खबर बहुत बुरी है”
सुनकर ही नेताजी 99% समझ गए थे कि खबर क्या होगी लेकिन फिर भी दिल कड़ा करके उन्होंने पूछ ही लिया” क्या खबर है?” और उधर से उत्तर मिला” आप को टिकट नहीं मिला”
सुनते ही नेताजी के सब्र का बांध टूट पड़ा। अब तक जिस पार्टी को वह न जाने किन-किन सुंदर विशेषताओं से पुकारते थे और अपने आप को केवल उसी का एक सिपाही मानते थे, क्षण भर में ही सारा नाता टूट गया ।गुस्से में भरकर वह चीखने लगे…” बेईमान.. दगाबाज ..धोखेबाज…मेरे 25 लाख रुपए मार लिए , टिकट फिर भी नहीं दिलवाया ”
पूरे कमरे में उनका विलाप गूंज रहा था। धीरे धीरे खबर फैली। शोक प्रकट करने वालों की लाइन लगने लगी । नेताजी गुस्से में थे । कह रहे थे …”पार्टी छोड़ दूंगा । अब टिकट कहीं और से लिया जाएगा । हम भी अपनी ताकत दिखा देंगे । जनता के बीच हमारी लोकप्रियता सबको पता चल जाएगी”।
चमचे कह रहे थे “साहब ! आपको पार्टी की जरूरत नहीं है । आप तो जिस पार्टी से खड़े हो जाएंगे , जीत जाएंगे ।”
नेताजी ने इसी बीच कई जगह फोन मिला डाले । हर जगह उनका एक ही कहना था” हम चुनाव लड़ेंगे। टिकट का इंतजाम करो।”
सब जगह जवाब में क्या आया यह तो पता नहीं चल रहा था, लेकिन हां नेताजी का गुस्सा बढ़ता जा रहा था।
धीरे धीरे एक घंटा बीता ।नेताजी का गुस्सा अब कुछ थोड़ा कम था । लेकिन दुख चेहरे से टपक रहा था । फिर शोक सभा शुरू हुई ।शोक सभा माने टिकट के न रहने पर उसकी स्मृति में आयोजित सभा। इसमें नेता जी के कुछ खास चमचे शामिल हुए। नेताजी दुखी होकर सिर लटकाए बैठे थे। चमचे उनके सामने और आसपास में घेरे खड़े थे। नेताजी बोले “सब कुछ खत्म हो गया ।टिकट हमें छोड़ कर चला गया।”
चमचे बड़ी मुश्किल से अपनी हंसी रोक पाए ।ऊपर से दुखी होने का नाटक करते हुए कहने लगे” हुकम सरकार ! ईट से ईट बजा देंगे”
नेताजी तब तक स्थिति को समझ चुके थे । कहने लगे “ठीक है ठीक है ! बैठ जाओ।”
फिर इधर-उधर की बातें हुई ।किस पार्टी का टिकट मिलेगा किसका नहीं मिल सकता… इस पर चर्चा हुई। निर्दलीय चुनाव लड़ने की संभावनाओं पर भी विचार किया गया ।आखिर में नेताजी ने चमचों के सामने वार्तालाप का निष्कर्ष निकालकर कहा कि मैं पार्टी का सच्चा सिपाही हूं । पार्टी का जो भी निर्णय है वह मुझे स्वीकार है। हम चुनाव तन मन धन से, जिसको टिकट मिला है, उसी का लड़ाएंगे ।बाद में एक चमचे के कान में फुसफुसाए” हराना है,,, बुरी तरह से हराना है।”
जिसके कान में नेताजी फुसफुसाए थे, उसने दूसरे के कान में यहीं शब्द फुसफुसाए और फिर धीरे धीरे सभी चमचों को इसका पता चल गया।
==========================
लेखक.. रवि प्रकाश; बाजार सर्राफा
रामपुर उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997 615451

133 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Ravi Prakash
View all
You may also like:
साहित्य सृजन .....
साहित्य सृजन .....
Awadhesh Kumar Singh
जो कर्म किए तूने उनसे घबराया है।
जो कर्म किए तूने उनसे घबराया है।
सत्य कुमार प्रेमी
कभी रहे पूजा योग्य जो,
कभी रहे पूजा योग्य जो,
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
मधुमास में बृंदावन
मधुमास में बृंदावन
Anamika Tiwari 'annpurna '
दिल का सौदा
दिल का सौदा
सरिता सिंह
धैर्य के साथ अगर मन में संतोष का भाव हो तो भीड़ में भी आपके
धैर्य के साथ अगर मन में संतोष का भाव हो तो भीड़ में भी आपके
Paras Nath Jha
✍️फिर वही आ गये...
✍️फिर वही आ गये...
'अशांत' शेखर
नम आंखों से ओझल होते देखी किरण सुबह की
नम आंखों से ओझल होते देखी किरण सुबह की
Abhinesh Sharma
वाराणसी की गलियां
वाराणसी की गलियां
PRATIK JANGID
दामन भी
दामन भी
Dr fauzia Naseem shad
ग़ज़ल/नज़्म - दिल में ये हलचलें और है शोर कैसा
ग़ज़ल/नज़्म - दिल में ये हलचलें और है शोर कैसा
अनिल कुमार
मेरी मोहब्बत का चाँद
मेरी मोहब्बत का चाँद
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
माटी की सोंधी महक (नील पदम् के दोहे)
माटी की सोंधी महक (नील पदम् के दोहे)
नील पदम् Deepak Kumar Srivastava (दीपक )(Neel Padam)
बुद्ध फिर मुस्कुराए / MUSAFIR BAITHA
बुद्ध फिर मुस्कुराए / MUSAFIR BAITHA
Dr MusafiR BaithA
जिन्हें बुज़ुर्गों की बात
जिन्हें बुज़ुर्गों की बात
*प्रणय प्रभात*
**आजकल के रिश्ते*
**आजकल के रिश्ते*
Harminder Kaur
*****वो इक पल*****
*****वो इक पल*****
Kavita Chouhan
शु'आ - ए- उम्मीद
शु'आ - ए- उम्मीद
Shyam Sundar Subramanian
फितरत
फितरत
Srishty Bansal
कवियों की कैसे हो होली
कवियों की कैसे हो होली
महेश चन्द्र त्रिपाठी
सपनों का अन्त
सपनों का अन्त
Dr. Kishan tandon kranti
धर्मांध
धर्मांध
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
3237.*पूर्णिका*
3237.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
सरकार बिक गई
सरकार बिक गई
साहित्य गौरव
*अब हिंद में फहराएगा, हर घर तिरंगा (हिंदी गजल)*
*अब हिंद में फहराएगा, हर घर तिरंगा (हिंदी गजल)*
Ravi Prakash
अर्कान - फाइलातुन फ़इलातुन फैलुन / फ़अलुन बह्र - रमल मुसद्दस मख़्बून महज़ूफ़ो मक़़्तअ
अर्कान - फाइलातुन फ़इलातुन फैलुन / फ़अलुन बह्र - रमल मुसद्दस मख़्बून महज़ूफ़ो मक़़्तअ
Neelam Sharma
सदा मन की ही की तुमने मेरी मर्ज़ी पढ़ी होती,
सदा मन की ही की तुमने मेरी मर्ज़ी पढ़ी होती,
अनिल "आदर्श"
मोर छत्तीसगढ़ महतारी
मोर छत्तीसगढ़ महतारी
Mukesh Kumar Sonkar
भगवान सर्वव्यापी हैं ।
भगवान सर्वव्यापी हैं ।
ओनिका सेतिया 'अनु '
कोई नाराज़गी है तो बयाँ कीजिये हुजूर,
कोई नाराज़गी है तो बयाँ कीजिये हुजूर,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
Loading...