टिकट जो भी दिल्ली से लाया(हास्य गीत)
टिकट जो भी दिल्ली से लाया(हास्य गीत)
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अभिनंदन का पात्र टिकट जो भी दिल्ली से
लाया
(1)
बड़ा कठिन है टिकट किसी दल का जुगाड़
कर पाना
इसमें तिकड़म करनी पड़ती मस्का खूब
लगाना
मत पूछो यह किसको- किसको कितना
कहाँ खिलाया
(2)
यह चुनाव का दौर गले में माला डाले फिरते
दूल्हे जैसे दीख रहे हैं सदा भीड़ से घिरते
गद्गद है उम्मीदवार जब हार उसे पहनाया
(3)
किस दल से यह खड़ा हुआ है इसको ज्ञात
नहीं है
यहाँ नीतियों की ,उसूल की कोई बात नहीं है
टिकट मिला जिस दल का जिसको भी
उसने हाथिआया
(4)
टिकट-वीर की चलो आरती हम सब आज
उतारें
नए दौर का राजकुँवर यह इसे फूल हम मारें
देखो – देखो जरा गौर से मंद- मंद मुस्काया
(5)
इसे हार का रत्ती भर भी कोई रोष न होगा
नेता पक्का बन जाएगा कोई दोष न होगा
गया जहाँ भी दफ्तर में सोफे पर गया
बिठाया
अभिनंदन का पात्र टिकट जो भी दिल्ली से लाया
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रचयिता: रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा,
रामपुर ,उत्तर प्रदेश मोबाइल 99976 15451