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23 Jul 2018 · 1 min read

कृषक

टपकता रहता घर जिसका टूटा फूटा छप्पर है।
फिर भी ‘बारिश हो जाये’ ध्यान लगाये नभ पर है।
वो खेतों की मेड़ों पर उदास अकेला बैठा है –
इस बार बरस जाना मेघा कर्जा मेरे सर पर है।
-लक्ष्मी सिंह

Language: Hindi
1 Like · 168 Views
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