कृषक
टपकता रहता घर जिसका टूटा फूटा छप्पर है।
फिर भी ‘बारिश हो जाये’ ध्यान लगाये नभ पर है।
वो खेतों की मेड़ों पर उदास अकेला बैठा है –
इस बार बरस जाना मेघा कर्जा मेरे सर पर है।
-लक्ष्मी सिंह
टपकता रहता घर जिसका टूटा फूटा छप्पर है।
फिर भी ‘बारिश हो जाये’ ध्यान लगाये नभ पर है।
वो खेतों की मेड़ों पर उदास अकेला बैठा है –
इस बार बरस जाना मेघा कर्जा मेरे सर पर है।
-लक्ष्मी सिंह