झूठ बताकर
झूठ बताकर उसने मुझको रुसवा कर दिया,
ऊँची ऊँची नाक से कायम रुतबा कर दिया।
झाँक के मैंने गिरेबान में उसके जब देखा,
क़ौम का देकर वास्ता जारी फतवा कर दिया।
जिसने नहीं उडानें देखीं अपनी ज़िद्द की आसमाँ,
तहरीरों में अंधेरा कुनबा भारी कर दिया।
— कुमार अविनाश केसर
मुजफ्फरपुर, बिहार