झूठ की लहरों में हूं उलझा, मैं अकेला मझधार में।
झूठ की लहरों में हूं उलझा, मैं अकेला मझधार में।
दूर तक दिखता नहीं कुछ, सांत सागर के सिवा।
झूठी दिलासा दे रहा मन को, नाव जीवन की खे रहा।
भय बसा है मन में मेरे, इक अनजान ज्वार के आने का।
फिर झूठी आशा हूं देता मन को, सागर पार कर जाने का।
सच बतलाऊं तो मन तैयार रहें, आने वाली विपदा को।
पर विश्वास नहीं है खुद पर तो, मैं मन पर क्या विश्वास करूं।
सच कहकर संघर्ष करूं, झूठ छिपाने को झूठ की आस करूं।
श्याम सांवरा…..