झूठे और मक्कारों को तो बेनकाब होना था
दोस्तों,
एक ताजा ग़ज़ल आपकी मुहब्बतों के हवाले,,,!!!
ग़ज़ल
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झूठे और मक्कारों को तो बेनकाब होना था,
आज नही तो कल उदय आफ़ताब होना था।
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अंधेरा कब तलक सच दबा के रखता दोस्त,
बर्फ कब तक जमीं रहे,उसे तो आब होना था
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सच परेशां हो सकता है मगर मर नही सकता
रक़ीब के हर सवाल का, उसे जवाब होना था
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दुश्मन की चालो का अंदाज़ नही था उस को,
मगर हां सच का समय थोड़ा खराब होना था
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घेर लिया था चारों ओर बच कर कहीं न जाऐ,
आखिर सच की झोली में ये ख़िताब होना था
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कोई न काबिल था इस जंग-ए-मैदां में “जैदि”,
कैसे हार जाता वो उसे तो लाजवाब होना था
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शायर:-“जैदि”
डॉ.एल.सी.जैदिया “जैदि”