झाड़-झाड़ बैरी
झाड़-झाड़ बैरी
झाड़-झाड़ बैरी हुआ, क्या कर सके इंसान|
ऐसे – ऐसे चल रहा, जैसा उसको ज्ञान||
जैसा उसको ज्ञान, हैं नेता मूर्ख बनाएं|
जात – पात के रफड़, उसे रखे हैं उलझाए||
कहे सिल्ला विनोद, पाखंड की धज्जा उखाड़|
मानव है लाचार, बैरी हुआ झाड़-झाड़||
-विनोद सिल्ला©