झाँकता चाँद की समीक्षा
झांकता चाँद : (साझा हाइकु संग्रह)
प्रकाशन वर्ष – जनवरी 2017
संपादक :प्रदीप कुमार दाश “दीपक”
झाँकता चाँद-एक प्रतिबिम्ब सुनहरे कल का
समीक्षक : सुशील कुमार शर्मा
हाइकु संग्रह की समीक्षा कठिन नहीं तो बहुत आसान भी नहीं है। प्रदीप कुमार दाश “दीपक” के संपादन में पिछले माह यह हाइकु संग्रह “झाँकता चाँद “प्रकाशित हुआ है। पुस्तक की समीक्षा से पहले हाइकु के बारे में अपनी समझ और पुस्तकों से जो ज्ञान मिला है उसको आप के साथ साझा करना बेहतर होगा इससे पाठक इस हाइकु संग्रह का आंकलन विस्तृत ढंग से कर सकेंगे।
सर्व प्रथम हाइकु की उत्पति का संक्षिप्त इतिहास आपसे साझा करना चाहूंगा। यह सर्व विदित है कि हाइकु कविता एक जापानी विधा है। जापानी साहित्य के इतिहास को अगर देखें तो हाइकु के प्रारंभिक कवि यामाजाकि सोकान (1465-1553 ई.)और आराकिदा मोरिताके (1472 -1549 ई.)ने आरंभिक हाइकु साहित्य रचा। 17 वीं शताब्दी में मात्सुनागा तेईतोकु (1570 -1653 ई.)ने हाइकु को जापानी साहित्य में स्थापित कराया। ओनित्सुरा (1660 -1738 ई.)ने हाइकु काव्य को जीवन दर्शन से जोड़ा। जापानी हाइकु का सर्वांगीण विकास मात्सुओ बाशो (1644 -1694 ई)के काल में हुआ। अगर बाशो को वर्तमान हाइकु के पितामह कहें तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। अठारहवीं सदी में बुसोन ने हाइकु रचनाओं में विषय वैविध्य एवं चित्रोपमा का समावेश किया। इसके पश्चात इस्सा और शिकी हाइकु के प्रमुख जापानी कवि हुए।
भारत में हाइकु को लाने का श्रेय कविवर रविंद्र नाथ टैगोर को जाता है। उन्होंने अपनी पुस्तक “जापान यात्रा” में बाशो की दो हाइकु कविताओं का बांग्ला अनुवाद प्रस्तुत किया। इसके पश्चात् त्रिलोचन शास्त्री ,डॉ. आदित्यनाथ सिंह एवं अज्ञेय ने हिंदी साहित्य को हाइकु का प्रथम साक्षात्कार कराया।
सामान्य शब्दों में हम अगर हाइकु कविता की परिभाषा करें तो “वह जापानी विधा की कविता जो 5 7 5 के वर्णक्रम में लिखी जाती है। “हिंदी में 5 7 5 के वर्णक्रम एवं अन्य भाषाओँ में 5 7 5 के ध्वनि घटकों (syllables)में यह कविता लिखी जाती है।
लेकिन यह परिभाषा हाइकु के सिर्फ बाह्यरूप को ही दर्शाती है क्योंकि हाइकु सिर्फ 5 7 5 के वर्णक्रम में लिखी जाने वाली कविता नहीं है बल्कि ऐसी कविता है जिसमे अर्थ ,गंभीरता एवं भावों का सम्प्रेषण इतना गहन एवं तीव्र होता है कि वह पाठक के सीधे दिल में उतर जाता है। अतः हाइकु को पूर्ण परिभाषित करना है तो उसकी परिभाषा कुछ इस प्रकार की होनी चाहिए “5 7 5 के वर्णक्रम में लिखी जाने वाली वह कविता जिसमे भावों की उच्चतम सम्प्रेषण क्षमता एवं अति स्पष्ट बिम्बात्मकता स्थापित हो। “हाइकु केवल तीन पंक्तियों और कुछ अक्षरों की कविता नहीं है बल्कि कम से कम शब्दों में लालित्य के साथ लाक्षणिक पद्धति में विशिष्ट बात करने की एक प्रभावपूर्ण कविता है।’
जिस हाइकु में प्रतीक खुले एवं बिम्ब स्पष्ट हों वह हाइकु सर्वश्रेष्ठ की श्रेणी में रखा जाता है। हाइकु अपने आकर में भले ही छोटा हो किन्तु “घाव करे गंभीर” चरितार्थ करता है। यह अनुभूति का वह परम क्षण है जिसमे अभिव्यक्ति ह्रदय को स्पर्श कर जाती है।
हाइकु प्रमुखतः प्रकृति काव्य है एवं इसके माध्यम से मानवीय गुणों एवं भावनाओं को अभिव्यक्त किया जाता है। जापानी हाइकु में प्रकृति के एक महत्वपूर्ण तत्व होते हुए भी हिंदी हाइकु में उसकी अनिवार्यता का बंधन सर्वस्वीकृत नहीं हो पाया है। हिंदी कविता में विषयों की इतनी विविधता है कि उसके चलते यहाँ हाइकु का वर्ण्य विषय बहुत व्यापक है।जिन हाइकु में व्यंग छलकता है उन्हें सेनर्यू कहा जाता है। जिन हाइकु में लक्षणा अमिधा एवं व्यंजना शब्दशक्तियों का समावेश होता है ऐसे हाइकु अत्यंत प्रभावित करते हैं।
युवा एवं प्रतिष्ठित हाइकुकार प्रदीप कुमार दाश “दीपक “द्वारा सम्पादित हाइकु संग्रह “झाँकता चाँद”वास्तव में हिंदी हाइकु विधा का आंदोलन है। इस संग्रह में चाँद को विभिन्न उपमानों के साथ प्रतिबिंबित किया गया है।भारतीय जीवन में चाँद सर्वाधिक प्रभावित करने वाले कारकों में से एक है। धार्मिक मानसिक सामाजिक एवं भारतीय दर्शन में चाँद को विशिष्ट स्थान प्राप्त है। प्रदीप जी ने यह विषय चुनकर हाइकुकारों की कल्पनाओं को उड़ने केलिए पूरा आकाश दे दिया था।सभी हाइकुकारों ने भाव पक्ष ,कला पक्ष ,भाषा एवं विभिन्न शैलियों का प्रयोग कर उच्च कोटि की हाइकु कविताओं की रचना की है।
हाइकु संग्रह “झाँकता चाँद”के कुछ उच्च कोटि के हाइकु कविताओं की समीक्षा आपके समक्ष है।
1. चाँद का मोती /नयन के सीप में /करे उजास —अल्पा जीतेश तन्ना
कवियत्री ने चाँद को मोती एवं आँखोँ को सीप का बिम्ब दिया है। अद्भुत परिकल्पना से रचा गया हाइकु।
2. अम्बु दर्पण /अवलोक रहा है /गगन चंद्र —-अंशु विनोद गुप्ता।
पानी स्वयं के दर्पण से चाँद को निहार रहा है। प्रतीकात्मकता का चरमोत्कर्ष।
3. चाँद कौस्तुभ /सितारों के मनके /हार अमूल्य —इंदिरा किसलय।
चाँद और सितारों को एक माला का बिम्ब देकर कवियत्री ने इस हाइकु से आध्यात्म से साक्षात् कराया।
4. उनींदा चाँद /अलसाई रजनी /लजाती भोर—–किरण मिश्रा
सुबह की प्रकृत छटा का अनुपम बिम्ब प्रदान करता उत्कृष्ट हाइकु।
5. आर्थिक व्यथा /वेतन चंद्र कथा /घटता चाँद —–कंचन अपराजिता।
चाँद को मनुष्य की आम समस्याओं से जोड़ता बेजोड़ हाइकु।
6. सामर्थ्य भर /बाटें चाँद उजाला /घटे या बढ़े —-ज्योतिर्मयी पंत।
मनुष्य की सामर्थ्य को सही दिशा बताता उत्कृष्ट हाइकु।
7. जागती नदी /उजला गोरा चाँद /चैत चांदनी —-देवेंद्र नारायण दाश
प्रकृति के सौंदर्य का अनुपम बिम्ब।
8. चाँद निकला /रोटी समझ कर /बच्चा मचला —-नरेंद्र श्रीवास्तव
मानवीय गुणों की उच्चतम व्याख्या करता श्रेष्ठ हाइकु।
9. मुठ्ठी में चाँद /आकाश है निहाल /धरती तृष्णा —पूनम आनंद।
वांछित वस्तु जब प्राप्त होती है तो उसका आनंद अद्भुत होता है। इस बिम्ब को प्रकट करा सुन्दर हाइकु।
10. चाँद तनहा /झील की पगडण्डी /चला अकेला —-प्रदीप कुमार दाश “दीपक ”
चाँद का विशुद्ध मानवीकरण करता हुआ बेजोड़ हाइकु। स्पष्ट बिम्ब और विशुद्ध प्रतीकात्मकता।
11. ओंठों पे दुआ /चांदनी है बिटिया /भरे अचला —-विष्णु प्रिय पाठक।
बेटी से चांदनी की अनुपम तुलना करता श्रेष्ठ हाइकु।
12. शरद रात /अमृत बरसाए /स्फटिक चाँद —-श्री राम साहू अकेला
शरद की चांदनी रातों का मनोहारी बिम्ब मन में स्थापित करता उच्चकोटि का हाइकु।
13. नभ में सजी /तारों की दीपावली /हँसता चाँद —-डॉ रंजना वर्मा।
भारतीय त्यौहार दीपावली का अद्भुत बिम्ब दर्शाता श्रेष्ठ हाइकु।
14. सहजता से /घटत बढ़त को /स्वीकारे चाँद —-मधु सिंघी
मनुष्य के सुख दुःख और सहने की क्षमता को प्रतिबिंबित करता उत्कृष्ट हाइकु।
इस संग्रह में मेरे भी आठ हाइकु कवितायेँ संग्रहीत हैं इनकी समीक्षा में पाठकों पर छोड़ता हूँ लेकिन इन में जो हाइकु कविता मुझे श्रेष्ठ लगी वो आपसे साँझा कर रहा हूँ।
15 . चाँद का दाग / मुख पर ढिठौना /कित्ता सलौना —-सुशील शर्मा
चूँकि विषय प्रकृतिजन्य था इसलिए बिम्बों में मानवीय अनुभूतियों का समावेश एक सीमा तक ही हो सकता था। मनुष्य के सुखदुख मन के भाव आशा नैराश्य ,अंतरंग बहिरंग भावों के बिम्ब सामाजिक आर्थिक तात्कालिक परिस्थितियों के बिम्ब इनका प्रकटीकरण चाँद जैसे विषय में सम्पूर्ण नहीं होट सकता है। फिर भी समस्त हाइकुकारों ने अपनी पूरी प्रतिबद्धता से अपनी हाइकु कविताओं को रचा है सभी बधाई के पात्र हैं।
प्रदीप जी के बारे में इस पुस्तक के फ्लेप पर दोनों और भारत के समस्त विश्व प्रसिद्द हाइकुकारों न विशद व्याख्या की है। मैं संक्षिप्त में इतना ही कहूंगा कि प्रदीप कुमार दाश “दीपक “हाइकु साहित्य के आसमान के वो चमकते चाँद हैं जो अपनी रचनाधर्मिता की स्निग्ध चांदनी से इस साहित्य को शुभ्रता प्रदान कर रहें हैं। उनका संपादन उच्च कोटि का है। प्रदीप जी ने कोशिश की यही कि इस संग्रह में उच्च कोटि के हाइकु कविताओं को ही स्थान दिया जाए। पुस्तक में हाइकुकारों को उनके नाम के वर्णक्रम के आधार पर स्थापित किया है ये उचित भी है और सामायिक भी।
इस उच्च स्तरीय हाइकु संग्रह के प्रकाशन में अयन प्रकाशन नई दिल्ली की भी अहम भूमिका रही है। सुन्दर कवर पृष्ठ के साथ बड़े एवं गहरे अक्षरों में हाइकु कवितायेँ छापी गईं हैं जो पाठक को अपने आप अपनी ओर खींचती हैं इसके लिए प्रकाशक श्री भूपाल सूद जी प्रशंसा के पात्र है।
हाइकु का जीवन दर्शन वास्तव में अंतर्बोध या सम्बोधि की अवस्था है जो साधक का लक्ष्य होता है। हाइकु, कविता को पाठक के समीप लाकर भाव को ह्रदय स्पर्श कराती है। हाइकु कविता भाव बोध की दृष्टि से भारतीय चिंतन और आध्यात्म के ज्यादा निकट है।
एक समर्थ हाइकु यथार्थवाद ,सामाजिक परिवेश ,आंचलिकता तथा प्रकृति के सामीप्य से ही प्रस्फुटित होता है।
यह हाइकु संग्रह अपनी कुछ विशेषताओं और कुछ कमियों को समेटे हिंदी साहित्य में हाइकु के सुनहरे कल का प्रतिबिम्ब है।
(सुशील कुमार शर्मा )
हाइकु संग्रह –झाँकता चाँद
संपादक -प्रदीप कुमार दाश “दीपक ”
प्रकाशक -अयन प्रकाशन नई दिल्ली
कीमत -200 रुपया