झरते फूल मोहब्ब्त के
झरते फूल मोहब्बत के
प्रेम का बस्ता खोला हमने निकले ढाई अक्षर
इनको पढ़ा तो घूम गया सर
गणित का कैसा फैला जंतर-मंतर का जाल
पढ़ू लिखूं लिखूं पढ़ू यह भी एक पहेली हैं
हिंदी डंडा मात्रा बिंदू होने पर भी प्रिय सहेली है
कविता शब्दों और अलंकारों की झंकार लिए
झरते फूल मोहब्ब्त मानो कोई निराला राग लिए
नेपथ्य हमेशा रंग बदलता जीने का ढंग बदलता
किरदारों का जन्म इसी नेपथ्य में होता रहता है
प्रेम का बस्ता खोला हमने निकले ढाई अक्षर