ज्योता वाली शेरां वाली।
डा ० अरुण कुमार शास्त्री -एक अबोध बालक – अरुण अतृप्त
माता मेरी सबसे न्यारी
ज्योता वाली शेरां वाली।
दर पे तेरे जो जो आता
नेह स्नेह वर पा जाता।
दूर रहे जो मैया तुमसे
कष्टों में जीवन को फंसाता।
एक नहीं दो नहीं तीन नहीं
गुणों की खान है मेरी मांय।
भाँति भाँति से सुख की दाती
वरद हस्त से सुख्ख प्रदाय।
जो कोई तेरे दर पे आके
मैया मोरी शीश झुकाये।
झोली भरती खुश है करती
देती छप्पर फाड़ माये।
तेरी महिमा जग है गाता
तेरे दर पर शीश है झुकाता ।
खाली कभी न जाए ओ
माये नी माये मोरी माये।
माता मेरी सबसे न्यारी
ज्योता वाली शेरां वाली।
दर पे तेरे जो जो आता
नेह स्नेह वर पा जाता।
दूर रहे जो मैया तुमसे
कष्टों में जीवन को फंसाता।