ज्ञान सत्य मूल्य है
सदा हो ज्ञान की बातेँ हमेशा सत्य की चर्चा।
नहीं हो व्यर्थ की बातें सदा हो स्नेह की चर्चा।
अनोखे काम की लेखा हमेशा पास में होगी।
तभी सत्कर्म जागेगा तभी आवाज भी होगी।
सदा माता कृपा होगी दया के सिन्धु सा आएँ।
मिले साहित्य की छाया हमेशा इंदु सा छाएँ।
नहीं सूर्यास्त हो जाये हमेशा दिव्यता आये।
हमेशा ज्ञान धारा ही बहेगी सत्व छा जाये।
सदा माँ शारदा वंदे लिखेंगे पुस्तकें प्यारी।
बहेगी पावनी गंगा रहेगी मित्रता न्यारी।
सदा होगी सुगंधित भावना उत्साह बोलेगा।
हमेशा दिव्यता का भाव ही सत्यार्थ डोलेगा।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।