ज्ञान वापी दर्शन (घनाक्षरी छंद)
काशी ज्ञानवापी दर्शन
घनाक्षरी छंद
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1
त्रिशूल भी ढक गया, गंगा भी फुहारा बनी,
छिन्न-भिन्न चिन्ह द्वैत भाव की खाई पटी।
लग रहे एक दूजे में विलीन देख सीन,
नटराज के अधीन दीन जैसे हो नटी ।
शिवजी के सामने हमेशा जब मुख रहा,
नंदी अब नजर तुम्हारी दूर क्यों हटी।
मंदिर में मस्जिद है मस्जिद में मंदिर है ,
मंदिर से मस्जिद सटी तो कुछ यों सटी।
2
अस्तित्व शिव का मिटाना चाहती पर,
चाहने के बाद भी मिटा न कुछ पाई है ।
नंदी ने ही खड़े खड़े , काम सब सुलटाया,
हटा नहीं ताकत तो खूब अजमाई है ।
भोले भोले समझे कि भक्ति भाव से भरी है,
बिच्छू सांप जैसी ही तो, उसे अपनाई है ।
धर्म रूप नादिया ने, नियत खराब देख,
मस्जिद से शिवाले को मुक्ति दिलवाई है ।
3
जय काशी विश्वनाथ,सृष्टिसारी आप हाथ,
जग के संहारक,कपट जाल में फसे।
सब जानते हुए भी,अनजान बने रहे,
क्रोध नहीं लाए भोले बंधन कसे कसे।
हो महाविनाशकारी,प्रलैकारी महादेव,
गजब दिखाई लीला, विश्वास में बसे।
उस अनाचारी को तो कौन बचा सकता है ,
आपके गले का हार,जाकर जिसे डसे।
गुरू सक्सेना
नरसिंहपुर मध्यप्रदेश
18/10/23