ज्ञान दायिनी
ज्ञान दायिनी पाप नाशिनी
भक्तों की हो भाग्य विधाता।
जग जननी अरु जग की पालक
नाम शारदे तेरा माता।।
तुम हो स्वर की देवी माता,
संगीत सदा तुझमें बसता।
तेरी अनुपम मुख आभा से
भाव प्रेम का मधुरिम रसता।
शरण तुम्हारी जो भी आए,
गीत प्रेम के सुख से गाता।
जग जननी अरु जग की पालक
नाम शारदे तेरा माता।।
पावन पंथों की रक्षक तुम,
दैत्य प्रकृति को हो हरती।
उचित पंथ जो प्राणी चलता,
खुशियों से तत झोली भरती।
तेरी दर पर जो भी आए,
भाग्य बदल है उसका जाता।
जग जननी अरु जग की पालक
नाम शारदे तेरा माता।।
कृपा दृष्टि जब तेरी होती,
ज्ञान दीप है उर में जलता।
सत शिक्षा पाकर मानव का,
जीवन पुष्पों सम है पलता।
ज्ञान बुद्धि अरु संस्कार सभी,
मातु कृपा से जग है पाता।
जग जननी अरु जग की पालक
नाम शारदे तेरा माता।।
तेरी कृपा से भक्त ओम भी,
नवल पंथ में बढ़ता रहता।
नहीं समझ है काव्य जगत की,
पर काव्य सृजन करता रहता।
शब्द पुष्प मां को अर्पित कर,
अंतर मन से मां को ध्याता।
जग जननी अरु जग की पालक
नाम शारदे तेरा माता।।
ओम प्रकाश श्रीवास्तव ओम
कानपुर नगर