ज्ञानी
औरों को अन्धा कहता है, अपनी छुपा रहा कानी।
बड़े-बुजुर्गों को झुठला के, करता अपनी मनमानी।
दूर-दूर रहता मै उससे, बात कदापि नहीं करता,
अपने को जो मान रहा है, औरों से ज्यादा ज्ञानी।
-श्रीकान्त निश्छल, प्रज्ञालोक
औरों को अन्धा कहता है, अपनी छुपा रहा कानी।
बड़े-बुजुर्गों को झुठला के, करता अपनी मनमानी।
दूर-दूर रहता मै उससे, बात कदापि नहीं करता,
अपने को जो मान रहा है, औरों से ज्यादा ज्ञानी।
-श्रीकान्त निश्छल, प्रज्ञालोक