जो होता है होने दो
नाम पात्र समय एवं स्थान काल्पनिक है
एक बार मेरी अधेड़ मरीजा जब कई बार घबराहट और छाती में दर्द के लिए भर्ती होने आई और उसके साथ एक भीड़ भी आती थी पांचवी छठी बार आने पर मैंने सब से कहा इनकी सभी जांचें ठीक है क्या कोई सदमे वाली बात तो नहीं है ।
उसका वृद्ध पति बोला ‘ यह बहुओं से उलझ जाती हैं ‘
मैं ‘कल क्या हुआ था ? वह ‘ बहू ने पोते को पीटा यह बचाने को बीच में आई और इन्हें हार्ट हो गया ‘
मैंने कहा ‘ अब जब यह बीच में आती हैं या नाराज होती हैं तो क्या बहुओं पर इसका कोई असर होता है ? ‘
वह बोला ‘ अजी खाक डालो बहुएं तो और मस्त हो जाती हैं कि चलो शायद अब की बार निपट ले ‘
मैंने कहा ‘ लेकिन इनकी तो हालत बहुत बिगड़ जाती है तो ऐसा करने से किसका भला हुआ जिस पर बिगड़ी उस पर तो कोई असर हुआ ही नहीं उलटा अपनी जान को और इन्हों ने जोखिम में डाल लिया । ‘
मेरे प्रश्न से निरुत्तर वे लोग असमंजस की स्थिति में मेरे सम्मुख मौन खड़े थे ।अब उन्हें देख मुझसे ना रहा गया । मैंने उनसे कहा भला न तुम्हारा हुआ ना ही तुम्हारी बहू का , और फिर अपनी ओर इशारा करते हुए उनसे कहा
‘ भला हुआ डॉक्टर का , अर्थात मेरा । बार बार घर जाकर लड़ो फिर यहां आकर फीस भरो और दिल पकड़कर मज़मा लगाकर भर्ती हो जाओ तो भला हुआ डॉक्टर का ही न ?’
फिर उसका पति निरीह भाव से बोला ‘ क्या करें डॉक्टर साहब अब इनकी बात कोई मानता नहीं , इनकी चलती नहीं इनकी कोई सुनता नहीं बस इसी का सदमा है । हर बात को येे दिल पर ले लेती हैं ।’
मैंने उसे समझाया
‘ अभी हम जिंदा हैं यह कैसे हो लेगा अगर यही सोच रही हो तो मरो जाकर , यह सोचो कि जो होता है होने दो हम जिंदा रहें तभी तुम ठीक रह पाओगी । जब तुम अपनी मर्जी से इस दुनिया में आई नहीं हो और ना अपनी मर्जी से इस दुनिया से जाओगी तो फिर ऐसी दुनिया में तुम्हारी हरेक मर्जी कैसे चलेगी । यहां 80% बातें तुम्हारी मर्जी के खिलाफ होती हैं अतः बाकी 20% ख्वाहिशों की मंजूरी पर खुशी खुशी ज़िन्दा रहना सीखो तभी गुज़ारा है। यानी की सोच कर देखो दुनिया भाड़ में जाए हम जिंदा रहे तभी अच्छा है , वरना अभी हम जिंदा हैं ये हमारे रहते कैसे हो जाए गा तो मरो जा कर । जो कुछ हमारी इच्छा के अनुसार हुआ वह तो अच्छा है ही और जो नहीं हुआ वह और भी अच्छा होगा क्योंकि वह मालिक की मर्जी से होता है और वह कभी गलत नहीं होता ।
ज्ञान की जो बातें मैं अपने जीवन में नहीं अपना सका था उन्हें सुनाकर मैंने अपना एक नुकसान जरूर किया इस बार जो वह डिस्चार्ज होकर गई तो फिर आज तक नहीं लौटी ।अक्सर मेरे साथ ऐसा ही होता है कि सच बोलने पर मरीज भाग जाता है और जाते-जाते मेरे आत्मविश्वास को और मजबूत कर जाता है