जो भी लिखता हूं ___ मुक्तक
जो भी लिखता हूं सच सच ही लिखता हूं मैं।
कोरे कागज के जैसा ही दिखता हूं मैं।।
कौन मुझको खरीदेगा बाजार में,
झूंट की तरह यारो कहां बिकता हूं मैं।।
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राजेश व्यास अनुनय
यूं तो सबके ही अपने तो होते ख्याल।
पर जिनके खयालों की गलती न दाल।।
देख कर के उनकी तो ऐसी दशा,
मेरे सीने में उठने तो लगता उबाल।।
राजेश व्यास अनुनय
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किस-किस को तो समझाऊं मैं देश में।
लोग मिलते हे मुझको कई वेश में।
चाहते है सभी तो सब मुझको मिले,
गुजरे सारा ही जीवन मेरा ऐश में।।
राजेश व्यास अनुनय