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16 Jul 2024 · 1 min read

जो नि: स्वार्थ है

जो नि: स्वार्थ है

श्रेष्ठ नर जगत में जो करता परमार्थ है,
भक्ति और प्रेम है वही जो निःस्वार्थ है।

आस्तिकता है अगर तो अहंकार कैसा,
धार्मिकता नहीं जिसमें छुपा स्वार्थ है।

धर्म अगर ईश्वरीय होता तो एक होता,
यह मर्म न जान सके तो ज्ञान व्यर्थ है।

चमत्कारी आस कमजोरों का काम है,
कि तर्क से परे होता नहीं जो समर्थ है।

उथले लोगों में उसूल संभव नहीं मित्र,
ढोंग करे नहीं जिसका कर्म सेवार्थ है।

जात धर्म के नाम पर हिंसा उचित नहीं,
समझिए सब पर मानवता निहितार्थ है।

सद्चरित्र ही तो देखेगा अगर ईश्वर होगा,
आस्था, श्रद्धा दिखाने का क्या अर्थ है।

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