जो धनी हैं वे धनी बनते जा रहे हैं,
जो धनी हैं वे धनी बनते जा रहे हैं,
जो ग़रीब हैं वे और ग़रीब होते जा रहे हैं,
दफ्तरों में कार्य-संस्कृति का है घोर अभाव,
विविध ख़र्चे तो मध्यम वर्ग ही उठा रहे हैं…
उच्च वर्ग तो सिर्फ़ सुखमय जीवन बिता रहे हैं।
..…अजित कर्ण ✍️