जो द्वार का सांझ दिया तुमको,तुम उस द्वार को छोड़
जो द्वार का सांझ दिया तुमको,तुम उस द्वार को छोड़
उस द्वार पर सिंचित रहते हो ,हर वक्त जिस द्वार को तुम लांग कर आए थे।
खुद के द्वार का प्रेम और मोह,कभी उस द्वार संचित और संकलित नही करेगा। खुद के द्वार का मोह छोड़ कर
उस द्वार की बिहारी को खुद से महकना है तो।
जोन लांघ लिया उसके चिंतक रहो बाकी जिस द्वार गए हो उसकी चिंता में मन लगाओ। तभी बनाए रिश्ते और परिवार बने रहेंगे। वरना एक द्वार के मोह ने ना जाने कितने द्वार नाश कर दिए। फिर भी उस द्वार की शरण ले ली
।