जोकर
इंतजार के पल खत्म….. आ रहे है नाटक के प्राण ……
जी हाँ! मशहूर जोकर मधुकर जी…. ”
और मधुकर बने महेश के लिए नाट्य भवन तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। महेश सबके चहेते सबसे लोकप्रिय पात्र” जोकर मधुकर” जिसके बिना हर नाटक अपूर्ण……
” तुम्हारी कोई बात बिना हँसे पूरी नहीं होती क्या?” महेश बोले।
“हँसना बोलना ही तो जिन्दगी का धन है महेश जी वरना गम किस इंसान के पास कम हैं। ” मधु फिर खिलखिलाई।
सप्तक नाट्य महाविद्यालय के युवा प्राचार्य सुन्दर व्यक्तित्व के धनी अन्तर्मुखी स्वभाव के अल्पभाषी महेश किसी भी अनजान से बोलने में बहुत संकोची थे।
पत्नी मधु अक्सर कहा करती-
“सबसे बोलने की आदत बनाइये। क्या पता जीवन में कब अनजानों से मदद मांगनी पड़े तब आपको बहुत दिक्कत होगी।”
जिन्दगी में उठ रहे ज्वार- भाटों ने मितभाषी महेश को बोलना सिखा दिया था।
अपनी प्यारी चंचल व सदा हँसती खिलाती पत्नी जिसे वे दिलोजान से चाहते थे एक दिन अचानक उनके ही सामने काल का ग्रास बन गयी। एक सड़क दुर्घटना में मौत हो गई और अपने अंतर्मुखी स्वभाव अनजान जगह पर वे चाहते हुए भी किसी से मदद का आग्रह न कर पाये।
“तुम सही थीं। मैं बोलूंगा हँसूंगा और दूसरों को हँसा कर उनके दुख भी कम करूंगा।” सजल नयनों बोझिल मन से यह संकल्प लिया था उसी पल महेश जी ने अपनी प्रिया को अंत्येष्टि हेतु अंतिम संस्कार हेतु ले जाते समय।
रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान )
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
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