जेवर-बुलंदशहर हाइवे पर हुई दुर्दान्त ह्त्या व महिलाओं के साथ हुए गैंगरेप से द्रवित होकर उपजे हुए कुछ मुक्तक…
जेवर-बुलंदशहर हाइवे पर हुई दुर्दान्त ह्त्या व महिलाओं
के साथ हुए गैंगरेप से द्रवित होकर उपजे हुए कुछ मुक्तक…
हाइवे पर हैं दरिन्दे, लूटते जो गाँव में.
आ फँसा परिवार जालिम कातिलों के दांव में.
पीड़ितायें माँ सरीखी किन्तु क्योंकर हो रहम?
हो रहे दुष्कर्म खुलकर, रहबरों की छाँव में..
रेप होते जा रहे थे खून की धारा बही.
देर से आयी पुलिस थी व्यर्थ उसकी बतकही.
गोलियां जिसको लगी थीं वह तड़पकर मर गया,
काम कातिल का बना शह राहजन को मिल रही..
लाइसेंसी दौर है यह, फाइलें बस साथ हैं.
असलहों से लैस कातिल, लोग खाली हाथ हैं,
रेप किडनैपिंग कपट छल लूट ह्त्या झेलते,
नित्य होते हादसे पर पीटते हम माथ हैं..
गुम हुए संस्कार सारे धार्मिकता खो रही.
हो चुका नैतिक पतन है श्लीलता जो सो रही.
पाठ्यक्रम से हैं हटे क्यों वीरता के सब सबक?
बीज नफरत के व्यवस्था आज क्यों कर बो रही??
गश्त पी० ए० सी० लगाये मित्र ऐसी राय हो.
अब लिखें फौरी इबारत जो नया अध्याय हो.
दें सजा ऐसी कि कांपे रूह इनकी सोंचकर,
इन दरिंदों को पकड़कर हाइवे पर न्याय हो..
–इंजी० अम्बरीष श्रीवास्तव ‘अम्बर’