जेएनयू विरोध
#जेएनयू में विरोध प्रदर्शन क्यूँ ?
यूनिसेफ (यूनाइटेड नेशन्स चिल्ड्रेंस फंड, लघुनाम:यूनीसेफ) की ओर से एक रिपोर्ट आई है।
उनके चीफ का कहना है 2030 तक 53/ (तिरेपन परसेंट) से ज्यादा भारतीय विद्यार्थियों के पास वो हुनर नहीं होगा कि वो 21 वीं सदी की नौकरियों के लिए क़ाबिल माने जाएं।
तो अब सोच के देखो कौन नहीं चाहता कि देश की यूवा पीढ़ी उस लायक़ बने और क्यूँ ?
क्यूँ कि मूर्ख नौजवान और ख़च्चर या भेड़ में ज़्यादा फर्क तो होता नहीं। जितना बोझ डाल दो जिधर हांक लो वो तुम्हारे इसारे के ग़ुलाम हैं। और गुलामों की अपनी मर्जी नहीं होती। उसका मालिक उसके मर्जी का स्वामी होता है।
बुरा लगा क्या ? कोई नहीं कुछ दिन और लगेगा उसकेबाद घांट पड़ जाएगी। बुरा लगेगा ही नहीं।
इस से बचना है अगर तो नौजवानों को खुद कूदना पड़ेगा मैदान में। जेएनयू के छात्रों का साथ देना होगा, उनकी आवाज से आवाज मिलानी होगी। तभी अपने भविष्य को बचा सकते हो वर्णा अंधों को धर्म की चाबुक से हाँकते रहेंगे और अपनी सत्ता का लुत्फ़ उठाते रहेंगे। बांकी जो मर्जी आये करो मेरा क्या हांथ डोलते आई थी वैसे ही जाउंगी। किसी को आगे पीछे छोड़ कर जाने वाली नहीं हूँ की उनके लिए मलाल रहेगा।
जेएनयू विरोध जरुरी है, नहीं तो अंधेरे से रौशनी तक आने में फिर सदियाँ खर्च करनी पड़ेगी…जय हो