जूनियर का बर्थडे
26 जनवरी 2022
गणतंत्र दिवस
323 अम्बिका भवन
थर्ड फ्लोर एपार्टमेन्ट
ज्योतिष राय रोड
कोलकाता – 53
ये मेरे बेटे का निवास है जहां चौथी बार प्रवास पर आया हूं। इससे पहले तीनो बार पत्नी साथ होती थी तो बात ही कुछ और हुआ करती थी जो अब नही है। पहली बार जूनियर के मुंडन संस्कार मे शामिल होने के लिए हम सब लोग यहां इक्ट्ठा हुए थे। मैं और पत्नी, बेटा बहू, बेटियां दामाद उनके बच्चे एवं रिश्तेदार इन सब के बीच मुझे अंदर से गर्व तथा अपार प्रसन्नता महसूस हो रही थी। खूब चहल-पहल थी, लग रहा था जैसे सप्ताह भर चलने वाला कोई त्योहार है जिसे सब लोग एक साथ मना रहे हैं। मुंडन के अलावा कोलकाता घूमने तथा गंगा सागर तीर्थ का भी प्रोग्राम रक्खा गया था। सभी पहली बार आए थे उत्साह और उमंग से लबरेज थे, नया अनुभव होने को था। हर दिन नया रोमांच नई अनुभूति, यादों मे सहेजा जाने वाला जूनियर के मुंडन संस्कार का कार्यक्रम अद्भुत था। इतने सारे लोगों के बीच जूनियर सभी का दुलार पाकर इधर से उधर चहलकदमी करती सबके पास जाती हंसती और खिलखिलाती रहती थी।
इस बार अकेला ही आया हूं क्यो कि अकेला हो गया हूं। कुछ दिनो पहले ही वो इस मायावी संसार को त्याग कर स्वर्गवासी हो गयीं। उनके चले जाने से मेरे अंदर का निडर दहाड़ता शेर शांत हो गया, सिर ऊंचा छाती चौड़ी रखने वाला राजा सत्ताच्युत हो गया, विनम्रता मेरा स्वभाव बन गया और समझौता मेरा आभूषण हो गया। हम विधाता के हाथों की कठपुतली हैं, समय और परिस्थित के अनुसार हमारे किरदार बदलते रहते है। ये महज एक इत्तेफाक ही कहा जाएगा जब भी यहां आए शीत-ॠतु ही रही और इन्ही दिनो बेटे की शादी की सालगिरह मेरा जन्मदिन तथा बहू और पोतियों का जन्मदिन भी मनाया जाता है। प्रारम्भ बेटे की शादी की सालगिरह से होता और अंत मे जूनियर के बर्थडे से समापन। जूनियर कह के अपनी छोटी पोती को बुलाता हूं। बेटे की पहली संतान कन्या थी, दूसरी फिर कन्या हो गई तो उसे मै जूनियर कहने लगा।
जूनियर प्रारम्भ से ही फुर्तिली और चंचल है अब वाचाल भी हो गई है, सबको मोह लेने की कला वो अच्छे से निभाती है, ये गाड गिफ्टेड है। जूनियर के अलावा भी उसके कई नाम है जो अलग अलग लोगो ने अपनी पसंद से रक्खे हैं। मजेदार बात ये है कि उसे याद रहता है कि कौन किस नाम से पुकारता है, अगर भूल से भी किसी ने कोई दूसरा नाम ले लिया तो टोंक देती है। मेरा नाम ये नही है मै तो अमुक हूं। वैसे तो नाम इलीना है, इस नाम से केवल उसकी मां बुलाती है। बाबा के लिए ‘जूनियर’ पापा के लिए ‘जानेमन’ बड़ी बुआ के लिए ‘बेबी डाल’ छोटी बुआ के लिए ‘इली’ मौसी के लिए ‘आव्या दीदी’ वगैरह
दो साल पहले जूनियर के बर्थ डे पर विशेष धूम मची थी। वजह ये थी कि बेटे ने इसके जन्म से तब तक अपने आफिस कोलीग्स को पार्टी नही दी थी। डेकोरेटर ने वेन्यू को क्रेप पट्टी, पर्दे, झालर, गुब्बारे और फूलों से बड़ी खूबसूरती से डेकोरेट किया था। जूनियर अपनी विशेष ड्रेस मे इधर उधर घूमती, कभी नाचती कभी न समझ मे आने वाले गाने गाती खुशी से फूली नही समा रही थी। केक कटने के बाद हैप्पी बर्थ डे का हंगामा तो देखने लायक था। लाउड म्युजिक नाचना गाना बच्चों के गेम और खाना जो जायकेदार था का लुत्फ लिया गया था। मेहमानो के जाने के बाद मिले गिफ्ट्स को खोलने मे व्यस्त जूनियर खुशी से लगभग चीख कर कह रही थी देखो मुझे ये क्या मिला। अपनी दादी से उसकी खास बनती थी, हर समय उन्ही के साथ रहना बातें करना उसे विशेष प्रिय था। दादी भी उस पर जान छिड़कती थी। अब सिर्फ यादें ही अब धरोहर हैं।
इस साल जूनियर के बर्थ डे पर कोई धूम-धाम नही की जानी है। उसकी दादी को गये अभी साल भर नही हुआ है। इसलिए अत्यंत सादगी के साथ शाम को केक कटवा के हैप्पी बर्थ डे बोला गया घर के लोगों ने गिफ्ट दे दिए और समापन कर दिया गया। रात को सोने के पहले मेरे बेडरूम मे आई और बोली – ‘बाबा जी मै दादी जी को मिस करती हूं। मां कहती है कि दादी जी गाॅड के पास चली गई हैं और गाॅड ने उन्हे बेबी बना दिया है। तो बाबा जी आप उन्हे ले आईए मै बेबी दादी जी के साथ खेलूंगी।’
स्वरचित मौलिक
सर्वाधिकार सुरक्षित
अश्वनी कुमार जायसवाल कानपुर