जुवां से क्यों नहीं कहतीं कि मुझसे प्यार करती हो
यूँ आँखों आँखों में तो हर दफा इज़हार करती हो।
जुवां से क्यों नहीं कहतीं कि मुझसे प्यार करती हो।
गुलाबीलब,खुलीजुल्फें लगाकर नैनोंमें काजल।
किया चूड़ी की खनखन रेशमी पाजेब ने घायल।।
करो दिनरात मुझको ही रिझाने येजतन सारे।
हमेशा आइने से पूछकर श्रृंगार करती हो।।
जुवां से क्यों नहीं कहतीं ———
मेरे नज़दीक हो कोई नहीं तुमको सहन होती ।
कहीं तो प्रेम है मुझसे इसी कारण जलन होती।।
लगी जो आग दिल में आँसुओं से बुझ नहीं पाई।
बहाना फिर नया लेकर सनम तकरार करती हो।
जुवां से क्यों नहीं कहतीं——–
ये माना लाज़मी है इश्क में शिकवे शिकायत भी ।
सुकूँ पाने जरूरी है मगर थोड़ी मुहब्ब्त भी।।
यूँ लड़ना रूठना गुस्सा जियादा है नहीं अच्छा।
मिले जो खूबसूरत पल क्यों ये बेकार करती हो।।
जुवां से क्यों नहीं कहतीं ———–
हमारी बाजुओं में आके तेरा चैन से सोना।
कभी सीने से लगकर बेवजह ही फूटकर रोना।
छुपाना हाले दिल अब आपका लगता नहीं मुमकिन।
यहीतो इश्क है क्या ज्योतितुम स्वीकार करती हो।।
जुवां से क्यों नहीं कहतीं———-
✍?श्रीमती ज्योति श्रीवास्तव