” जुनि कहू बाय -बाय “
डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
=================
हमर लेख ,ब्लॉग ,रचना आ कविता इत्यादि मे मान मर्यादा ,मृदुलता ,सौम्यता आ शिष्टाचार क प्रथिमकता सर्वोपरि रहित अछि ! रचना व्यक्तिगत अनुभव आ कल्पना क तार सं गढ़ल जाइत छैक ! सब व्यक्ति कें इ अभिलाषा होएत छैक जे हमर रचना कें प्रसंशा ,सम्मान भेटय ! एहि क्रम मे हम नीक ब्लॉग कें आहां सनक श्रेष्ठ व्यक्ति आ मित्र वर्ग कें सादर समर्पित करैत छी !…… एहि शीतल बसात मात्र एक्के दिश सं नहि वहय ! ……मित्र लोकनि पसरल छथि दसो दिशा मे !…. विचार आ अनुभवक ,आदान-प्रदान क कुंजी सं हमर लोकनिक ज्ञानक ताला खुजि जाइत अछि ! हम इ कथमपि नहि कहब जे युध्य भूमि मे पहुँचि युध्य नहि करू ! यदा कदा हम महाभारतक अर्जुन बनि जाइत छी ! …केना हम युध्य लड़ब ?..इ लोकनि त हमर अप्पन छथि..अप्पन लोकक शोणित सं केना विजय तिलक लगायब ?….चलू …किछु दिनक लेल बाय ..बाय हमहूँ कहि दऽ छियनि ! …फेस बुक ..हमरा बुझने ..एकटा रणक्षेत्र अछि… आ हमरा लोकनि तकर योध्या ! …योध्या युध्य क समय अवकाश ..?.नहि ..कथमपि नहि ! आब त इ नवीन यन्त्र हमर परिधान बनि गेल अछि ! बुझु कर्णक कवच आ कुंडल हमरा प्राप्त भ गेल अछि ! अपना शरीर सं परित्याग केनाई संभव नहि बुझना जाइत अछि ! तखन फेसबुक सं विरक्ति नहि हेबाक चाहि …………!
================
डॉ लक्ष्मण झा “परिमल ”
दुमका