जुदाई!
शीर्षक – जुदाई!
विधा – राजस्थानी गीत
परिचय – ज्ञानीचोर
शोधार्थी व कवि साहित्यकार
मु.पो. रघुनाथगढ़, सीकर राज.
पिन – 332027
मो. 9001321438
घम्म-घम्म घम्मकै बादळी मारू जी रे!(टेक)
थे थोड़ो सो,थे थोड़ो सो,
धरज्यो ध्याण रे म्हारों भी रे!
यो जीवड़ो म्हारों के करै बिचारो रे!
थे परदेशी बणग्या बळम जी,
जिवड़ो म्हारो डोळ गयो।
थे पाछा आया ना बळमजी,
हिवड़ो म्हारों रोय उठ्यों।
मैं बैरागण भर्या भवण म्हँ,
कुण तो म्हारी पूछ्छ करै।
थे बाळमजी बण्या फिरो हो,
काळजो म्हारो दुख्खी करै।
कुण-कुण सा पापा री सजा थे,
बिणा बताया दे रह्या।
ई उम्मर म्हँ म्हारो जोबण,
बैठ्या-बैठ्या लूट रह्या।
कैया बताऊँ थानै पीवजी,
हिवड़े में थे बस्या रह्या।
हाथा म यो म्हारो चूड़लो,
बेमतलब सू खनक रह्या।
आँसू-आँसू आव्व आँख म्ह,
कुण पूछै म्हारा आँसू।
पाछा आवों प्यारा बाळमजी,
मन भर बाँता करल्यूँ थासूँ।
देवर-जेठ घणा जोर का,
के-के बाकी बात करूँ।
मैं दुख्यारण घणी रे बावली!
कोई बतावों काँई करूँ।
मेरी आँख्या थाने ढ़ूँढें,
थे भँवरजी कठे गया।
नान्हों सो यो थारो छोरो,
बिळख-बिळख कर रोय रह्यों।
माथा म्ह आ थारी सैनाणी,
पूछ-पूछ कर मारे री।
मीठा-मीठा बाण चलावै,
हिवड़ो म्हारो बेंध रही।
सासू पूछै रोज पीवजी,
काँई बताऊँ काँई हुयो।
नणदल बाई कह्वै रोज की,
ओ थारे काँई हुयो।
बाँता सुण-सुण रहगी पिवजी,
कोई ना म्हाँँकन्न बात बची।
नैणा म्हँ जी आँसू भर्या है,
कदे बणी ना म्हे शची।
पाछा आओं गेह बळम जी,
जीवड़ो जी को जाय रह्यों।
टूट रह्या साँसा का मोती,
जीवड़ो जी को जाय रह्यों।