*जी रहें हैँ जिंदगी किस्तों में*
जी रहें हैँ जिंदगी किस्तों में
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जी रहें हैँ जिंदगी किस्तों में,
कुछ नही बचा है रिश्तों में।
भूमि का छाना चप्पा-चप्पा,
ढूंढते हैँ उन को फरिश्तों में।
हैसियत आढे आ जाती है,
प्यार मिलता नहीं मुश्तों में।
जिन पै वारी धन दौलत थी,
जिन्दा हम हालत खस्तों में।
सूनी – सूनी सब की हैँ राहें,
महफ़िल कहाँ है तख्तों में।
चिड़िया गई है दाना चुगने,
घोंसले टूटें-फुटे दरख्तों में।
सुख शांति छीनी मनसीरत,
कुछ नहीं खाली बस्तों में।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेडी राओ वाली (कैथल)