जीव के मौलिकता से परे हो,व्योम धरा जल त्रास बना है।
जीव के मौलिकता से परे हो,व्योम धरा जल त्रास बना है।
जीवन के अपयश को नकारा,है फिर जीवन खास बना है
प्रेम के पग पग पंकज के रस से ही सदा मधुमास बना है
चाहते हैं जिनको भी हृदय से,उनका ही मन दास बना है।।
दीपक झा रुद्रा