#जीवन_दर्शन
■ #जीवन_दर्शन
💥 एक जीवन< दो राहें : चिंता और चिंतन
[प्रणय प्रभात]
आज के दौर में ही नहीं बल्कि हमेशा से जीने के दो रास्ते रहे हैं। पहला चिंता और दूसरा चिंतन।अधिकांश लोग जीवन-पर्यंत चिंता में जीते हैं और चिंताओं से जूझते हुए ही दुनिया से कूच कर जाते हैं। वहीं कुछ विरले चिंतन की राह पकड़ कर हर चिंता से उबरते व औरों को उबारते रहते हैं।
चिंता में पड़े बहुत से लोग ऐसे जीते हैं, मानो चिता पर सवार हों। दूसरी ओर शुभ चिंतन में मग्न रहने वाले लोग जीवन को निर्विकार भाव से जीते हैं। ऐसे लोग प्रायः चिंतितों को चिंता से मुक्त करने का प्रयास भी किसी न किसी माध्यम से अहर्निश करते रहते हैं। जो बहुधा निष्काम व निश्छल होते हैं।
नहीं भूलना चाहिए कि चिंता स्वयं में एक विपत्ति है, जो तमाम शंकाओं को जन्म देते हुए सतत वंश-वृद्धि करती रहती है। इसके विपरीत चिंतन हर शंका-आशंका का समाधान तलाशता व सुझाता है। प्रायः देखने को मिलता है कि सरल से सरल कार्य व लक्ष्य को भी चिंता जटिल बना देती है। जबकि कठिन से कठिन कार्य व लक्ष्य को सकारात्मक भाव से युक्त चिंतन आसान कर देता है।
माना जाना चाहिए कि दृष्टिगत व्यक्ति या वस्तु का मोह चिंता का मूल कारण है। जबकि स्वयं को समय रहते समझना और यथासमय समझा लेना चिंतन की उपलब्धि है। अब यह निर्णय हमें स्वयं करना है कि हम जीवन में क्या चुनते हैं? आप भी सोचिएगा, अपनी सोच के विषय में। जय सियाराम।।
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श्योपुर (मप्र)