जीवन है पीड़ा, क्यों द्रवित हो
जीवन है पीड़ा, क्यों द्रवित हो
कौन कहे यात्री, तुम थकित हो
तुम मानुस भले देवता से
नेक हृदय हो, पावन पतित हो
क्यों मात्र अपवित्र छूने से
ये सुने विदेशी तो चकित हो
बाण बुरे वाणी के माना
पर तू न तनिक इनसे व्यथित हो
निर्धन-शोषित की एक जाति
जो वर्ग वंचित वही दलित हो
महावीर उत्तरांचली