जीवन से रुसवाई
गीत
दिल की हालत किसे बताएँ, समझ न आता भाई।
घायल कर देती है हमको, अपनी ही परछाई।
माटी के पिंजरे पर देखो, इठलाता है तोता।
विमुख हुआ यदि सत्य सार तो, जीवन भर है रोता।
पता नहीं कब साथ छोड़ दें, सांसें हैं हरजाई।
घायल कर देती है हमको, अपनी ही परछाई।
उलझ गया माया में पंक्षी, भ्रमित हुआ जीवन भर।
ज्यों कस्तूरी साथ लिए मृग, घूम रहा कानन भर।
मँहगी पड़ने वाली है यह, जीवन से रुसवाई।
घायल कर देती है हमको, अपनी ही परछाई।
व्यर्थ उमरिया बीत गयी यह, क्या खोया क्या पाया।
जीवन भर कुछ समझ न पाया, काया की कुछ माया।
खुद अपने जीवन में मैनै, खुद ही आग लगाई।
घायल कर देती है हमको, अपनी ही परछाई।
(स्वरचित मौलिक)
#सन्तोष_कुमार_विश्वकर्मा_सूर्य
तुर्कपट्टी, देवरिया, (उ.प्र.)
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