जीवन समर है
ये धरा का स्वर्ग था,
कश्मीर है यह
पर नहीं
यह स्वर्ग कैसा?
आज देखा
मेरी आँखों ने इसे
कश्मीर है
उजड़ी हैं केसर क्यारियाँ
घिर रहा चहुँ ओर
जीवन साँझ का
देखो तिमिर
हर पल निरर्थक लग रहा
और व्यर्थ श्रम है
बोझ भर है
खो गई आशा कहीं
उल्लास पर पाला पड़ा
हर ओर छाया
मृत्यु का भय
मन,
अटकता ही नहीं
भटका फिरे
बन कर भ्रमर वह
हे मनुज
मत बैठ थक कर
प्राण जब तक
देह में हैं
कर्म कर
तू सोच ले
जीवन समर है